कारगिल युद्ध से पहले शहीद हुए जांबाजों के परिजन को सरकार ने किया अनदेखा...
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा। जैसी क्रांतिकारी पंक्तियों के रचियता बंकिम चंद्र चटर्जी ने स्वप्न में भी यह नहीं सोचा होगा कि आजादी के बाद राष्ट्र की बलिवेदी पर कुर्बान होने वाले रणबांकुरों की शहादतों को सरकारों द्वारा इस तरह भूला दिया जाएगा। आज सारा देश कारगिल युद्ध की 21वीं वर्षगांठ पर उस युद्ध में शहीद हुए जांबाज सैनिकों की शहादत को याद कर रहा है। मगर 1999 से पहले जिन सैनिकों ने राष्ट्रहित में प्राणों की आहुति देकर अपना नाम शहीदों की श्रेणी में स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवाया, उनकी शहादत को सरकार ने भूला दिया है। क्योंकि 1999 के कारगिल युद्ध के बाद सरकार ने एक पॉलिसी बनाई, जिसमें 1999 व उसके बाद शहीद हुए सैनिकों के परिजनों को उसमें शामिल किया गया। जिसके तहत परिवार के एक सदस्य को नौकरी व गांव में शहीद की याद में यादगार बनाना उस पालिसी में शामिल किया गया। मगर 1994 से लेकर 1998 तक शहीद होने वाले सैनिकों के परिजनों को इस लाभ से वंचित रखा गया। जिसके चलते उन्ह शहीदों के परिवारों ने गुरदासपुर में इकठ्ठे हो कर सरकार से यह सवाल पूछा है उकने साथ यह वितकरा किउं किया गया है जहाँ फिर उनके शहीद नही है |
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सेना की 22 पंजाब रेजीमेंट के शौर्य चक्र विजेता शहीद सिपाही रजिंदर सिंह निवासी कलानौर की पत्नी पलविंदर कौर ने नम आंखों से बताया कि उनके पति एक नवंबर 1998 को पुंछ सेक्टर में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। पति की शहादत के तीन महीने बाद उन्होंने बेटे रविंदर को जन्म दिया। उसने बताया कि पति की शहादत के मौके पर सरकार ने उनके पति की याद में यादगारी गेट व स्कूल का नाम शहीद के नाम पर रखने की घोषणा की थी। मगर शहादत के 22 वर्षों के बाद भी सरकार ने अपना वादा नहीं निभाया। आज उनका बेटा बीएससी करने के बाद बेरोजगार घूम रहा है। लेकिन अभी तक उन्हें नोकरी नही मिली |
11 सिख एल.आई युनिट के शौर्य चक्र विजेता शहीद सिपाही रौनकी सिंह की बेटी गुरमीत कौर ने नम आंखों से बताया कि उनके पिता ने 12 अगस्त 1997 को जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा सेक्टर में आतंकियों से लड़ते हुए शहादत का जाम पिया था तथा जिस दिन उनके पिता का भोग था, उसी दिन उसने जन्म लिया था उसने बताया कि वह चार बहने ही किसी तरह माँ ने मिहनत मजदूरी कर तीन की शादी कर दी वह सबसे छोटी है और ए.एन.एम का कोर्स किया है तथा आगे भी उच्च शिक्षा ले रही है। उसने बताया कि उसका कोई भाई नहीं है। इस लिए उसने सरकारी नौकरी के लिए कई बार आवेदन दिया मगर उसे नौकरी नहीं मिली। मामूली पेंशन से उसके घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा है।इस लिए उसने सरकार से मांग की के उसे नोकरी दी जाए | इसी तरह गुरदासपुर से सबंदित शहीद जवानों के 8 परिवार है जो सरकार से मदद मांग रहे हैं | वही शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर रविंदर सिंह विक्की ने कहा कि सरकार शहीदों को किसी भी कैटागिरी में न बांटे तथा कारगिल युद्ध के बाद बनाई पालिसी में बदलाव करते हुए पंजाब के इन 24 परिवारों को भी इसमें शामिल कर इन परिवारों को उनका बनता हक दें |