हरियाणा के इस गांव में हैं दुर्लभ प्रजाति के कछुए

फतेहाबाद के गांव काजलहेड़ी में गुरु गौरख नाथ संप्रदाय का एक डेरा बना हुआ है। डेरा में एक दशक पुराना जोहड़ है। जोहड़ में लगभग 100 साल से अधिक समय से दुर्लभ प्रजाति के कछुए रहते हैं। डेरे के महंत और ग्रामीणों द्वारा इनकी देख रेख की जाती है। कछुओं की सुरक्षा के लिए जोहड़ के चारों ओर लोहे की जाली लगाई हुई है। वन्य प्राणियों की सुरक्षा को देखते हुए हरियाणा सरकार द्वारा लगभग 8 एकड़ भूमि को आरक्षित घोषित किया गया है।

फतेहाबाद || हरियाणा के गांव काजलहेड़ी गाँव में 100 साल पुराने दुर्लभ प्रजाति के कछुए मौजूद हैं। जिनका वजन 15 से 20 किलोग्राम तक है। गांव वालों का मानना है कि कछुआ विष्णु भगवान का अवतार है और जब ताली बजाते हैं और कुछ खाने के लिए डालते हैं तो कछुए पानी से बाहर निकलकर किनारे पर आ जाते हैं। इन दुलर्भ कछुओं को देखने दूर-दराज से लोग पहुंचते हैं।
गाँव काजलहेड़ी के जोहड़ के पास बने डेरे के महंत रामेश्वर नाथ जी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चाचा लगते हैं। उनका कहना है कि योगी आदित्यनाथ इस डेरे में दो बार आ चुके हैं। फतेहाबाद के गांव काजलहेड़ी में गुरु गौरख नाथ संप्रदाय का एक डेरा बना हुआ है। डेरा में एक दशक पुराना जोहड़ है। जोहड़ में लगभग 100 साल से अधिक समय से दुर्लभ प्रजाति के कछुए रहते हैं। डेरे के महंत और ग्रामीणों द्वारा इनकी देख रेख की जाती है। कछुओं की सुरक्षा के लिए जोहड़ के चारों ओर लोहे की जाली लगाई हुई है। वन्य प्राणियों की सुरक्षा को देखते हुए हरियाणा सरकार द्वारा लगभग 8 एकड़ भूमि को आरक्षित घोषित किया गया है। यहां पर वन्य प्राणियों का शिकार करना खदेड़ना या फिर अन्य किसी भी प्रकार की गतिविधि वर्जित है।

इस बारे जानकारी देते हुए ग्रामीण सुभाष चंद्र ने बताया कि उनकी 50 साल आयु हो चुकी है। कछुओं की प्रजाति उससे भी पुरानी है। इस स्थान पर बाबा धुना नाथ की शक्ति है। यहां पर पहले एक समाधि थी अब मंदिर बन गया है। यहां पर एक पुराना कुआं हुआ करता था। जिसमें एक महिला दो बच्चों सहित गिर गई थी। जिसके बाद सुबह ग्रामीणों ने उसे जीवित निकाल लिया। ग्रामीण सुभाष चंद्र ने बताया कि डेरे में दूर दराज से लोग यहां माथा टेकने के लिए आते हैं और उनकी मन्नत पूरी होती है। कुछ समय पहले पशुओं की तस्करी करने वाले लोग इन्हें चुरा कर ले जाते थे। कई बार उन्हें पकड़ा भी गया है, उसके बाद जोहड़ के चारों ओर लोहे की जाली लगाई गई है और ग्रामीणों द्वारा नजर भी रखी जाती है, ताकि कोई कछुओं को चुराकर न ले जा सके।