हिसार में अब सैटेलाइट के माध्यम से पता चलेगा पशुओं की बीमारी का...

हिसार की लाला लाजपत राय यूनिवस्ट्री ने (लुवास) परजीवी विज्ञान विभाग ने एक ऐसी प्रयोगशाला स्थापित की गई है जिसमें सेटेलाइट सिस्टम के द्वारा पशुओं में होने वाले बीमारियों परजीवी रोगों का पता लगाया जा सकेगा।

हिसार में अब सैटेलाइट के माध्यम से पता चलेगा पशुओं की बीमारी का...

हिसार (प्रवीण कुमार) || हिसार की लाला लाजपत राय यूनिवस्ट्री ने (लुवास) परजीवी विज्ञान विभाग ने एक ऐसी प्रयोगशाला स्थापित की गई है जिसमें सेटेलाइट सिस्टम के द्वारा पशुओं में होने वाले बीमारियों परजीवी रोगों का पता लगाया जा सकेगा। इस तरह की प्रयोशाला भारत में और कही और नही है हिसार में स्थापित की गई है। यह जलवायु के आधार पर सैटेलाइट के माध्यम से पता चल सकेगा किस तरह की जलवायु में और कौन से स्थान पर घोंघे व चिचड पाए जाते है क्योकि घोंघे व चिचडों से पशुओं में ज्यादातर बीमारियां  फैलती है। हिसार के परजीवी विज्ञान विभागाध्यक्ष डा. सुखदीप वोहरा व डा. स्नेहिल गुप्ता ने बताया कि हरियाणा की जलवायु सैटेलाइट मैप के अनुसार  लाल रंग में पंचकुला, अंबाला करनाल, यमुनानगर में घोघ्ंाो से होने वाली बीमारिया ज्यादा मिलती है और इन स्थानों पर पशु भी ज्यादा बीमार होते है पशुओं के पेट में कीडे पड जाते है और जिससे पशु दस्त से ग्रस्त हो जाता है। जलवायु के हिसाब से मैप के अनुसार पीले रंग के कुछ मात्रा में बीमारिया  बहुत कम बीमारिया पाई जाती है |

तथा हरे रंग के सैटेलाइट मैप में बीमारिया नही पाई जाती। उन्होंने बताया जहां घोघे पाए जाते है वहा पशुओं में ज्यादा बीमारिया पाई जाती है और कई बार घोघो के कारण आदमी भी बीमारी का शिकार हो जता है। घोंघों से पशुओं में पेट व जिगर के कीडट पड जाते है जिसके कारण पशुओं में दस्त लग जाते है। वैज्ञानिकों के अनुसार घोंघो के कारण इंसान में बीमारी फैल जाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार जहां जीरी की खेती होती वहा घोंघे लारवा छोड देते है जिससे इसंान के पाव में सक्रियल डिमोटेटिस बीमारी से फोडे हो जाती है।  वैज्ञानिकों के अनुसार पशु चिकित्सकों को बीमारियों से बचाव के लिए दवाईया का सुझाव देते है और किसानों को किसानों को जागरुक करते है।  हिसार में में स्थापित प्रयोग शालाा से पशुओं की बीमारियों के बार में बताया जाता है और  इससे जहां पहले ही पशुओं को उपचार देकर स्वस्थ किया जा सकेगा।

बीमारी फैलने के बाद दवाई पर सरकार के होने वाले लाखों रुपये भी खर्च होने भी बचेगा। हरसैक भारतीय अंतरिक्ष अनुंधान संस्थान  देहरादून  नेशनल रिमोट सेसिंग सेंटर की मदद से प्रयोगशाला से संबंधित सामान व जानकारी प्राप्त की गई। परजीवी विज्ञान विभाग ने यमुनानगर, पंचकुला, अंबाला  करनाल में हाल ही में पशुओं में होने वाली पेट में कृत्रिम गुर्दे को कमजोर करने वाले कृमि आदि  बीमारियों के कारणों का भी सेंटेलाइट के माध्यम से हाल ही में पता लगाया है। लुवास देश की पहली ऐसी यूनिवर्सिटी बन गई है जो सेटेलाइन सिस्टम के माध्यम से देश के किसी भी कोने में पशुओं में फैलने वाले पत्ता कृमि परजीवी रोग का पहले ही पता लगा सकेगी। इसके लिए लुवास के परजीवी विज्ञान िवभाग के अधिकारियों ने हरसैक  हैदराबाद और देहरादून के नेशनल रिमोट सेसिंग सेंटर के माध्यम से सेटेलाइट डाटा का सहारा लिया है।

परजीवी विज्ञान विभागाध्यक्ष डा. सुखदीप वोहरा व डा. स्नेहिल गुप्ता ने बताया कि हाल ही में सेटेलाइट की मदद से ही हरियाणा के करनाल  अंबाला में गोंगे से होने वाली बीमारी  पेट के कृमिए खून में कृमि और पाचन क्रिया का कम होना आदि का पता लगाया गया है। इससे फ ायदा यह होगा कि जिस एरिया में बीमारी फैली है या फिर फैलने वाली हैए उसी में ही पशुपालन विभाग द्वारा दवाई का वितरण िकया जा सकेगा। वातावरण और हवाए पानी के माध्यम से सेटेलाइट पशुओं में होने वाली बीमारी का पता लगाएगा। लुवास के वैज्ञानिकों ने युद्ध स्तर पर इस पर काम करना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि जिस भी प्रदेश के विभिन्न जिला में पशुओं को कोई भी बीमारी होती है तो सरकार के िनर्देश पर पशुपालन विभाग पूरे प्रदेश के पशुपालकों को निशुल्क दवाई से लेकर टीके लगाने का कार्य करता है। कई बार जो पशु बीमारी से ग्रस्त नहीं है यदि वह दवाई का सेवन करता है तो उसका शरीर भी कमजोर होता है। यहीं नहीं स्वस्थ्य पशु को दवाई देने के कारण सरकार को भी करोड़ों रुपये का घाटा होता है। सेटेलाइट सिस्टम के माध्यम से बीमारी वाले स्थान का निश्चित पता लगाया जा सकेगा। जिससे जहां उसी स्थान पर दवाई का वितरण और बचाव के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। पूर्व में जिन जिलों या गांव में बीमारी फैली उसका ब्योरा तुरंत आ जाता है सामने सेटेलाइट मानचित्रण की मदद से उन स्थानों का ब्योरा भी वैज्ञानिक देख सकते है। जिनमें पूर्व में पशुओं में बीमारी फैली थी। जिला वाइज ब्योरा अपलोड़ होता है। यदि इन जिलों में फिर से कोई जागरूकता अभियान या दवाई का िवतरण कराना है तो पशुपालन िवभाग के अधिकारी तुरंत ही करा सकते है। सेटेलाइट सिस्टम की मदद से लुवास के परजीवी िवज्ञान िवभााग के वैज्ञानिक पशुओं में होने वाली बीमारियों का पता लगा सकेंगे। बीमारी वाले स्थान का पता लगने के बाद िरपोर्ट पशुपालन िवभाग के अधिकारियों को भेजी जाती है।