महेंद्रगढ़ के मोदाआश्रम मंदिर मे महाशिवरात्रि के पर्व पर भगवान शंकर का ज्लाभिषेक करने के लिए उमड़ी श्रद्धालुओ की भीड़।

महेंद्रगढ़ के दोहान नदी में स्थित मोदाश्रम में शिव मन्दिर क्षेत्र में धार्मिक आस्था का प्रतीक है। लोग सुबह-शाम यहां आकर बाबा चन्द्रमोली की पूजा अर्चना करते हैं। लोगों का कहना है कि दूर-दूर से यहां मेले के अवसर पर लोग भगवान के दर्शन के लिए आते हैं। जो लोग यहां सच्चे मन से आकर पूजा अर्चना करते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। वैसे तो यहां काफी संख्या में श्रद्धालु बाबा चन्द्रमोली को जल चढ़ाने आते हैं लेकिन महाशिवरात्रि के दिन तो इसका नजारा अलग ही होता है।

महेंद्रगढ़ के दोहान नदी में स्थित मोदाश्रम में शिव मन्दिर क्षेत्र में धार्मिक आस्था का प्रतीक है। लोग सुबह-शाम यहां  आकर बाबा चन्द्रमोली की पूजा अर्चना करते हैं। लोगों का कहना है कि दूर-दूर से यहां मेले के अवसर पर लोग भगवान के दर्शन के लिए आते हैं। जो लोग यहां सच्चे मन से आकर पूजा अर्चना करते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। वैसे तो यहां काफी संख्या में श्रद्धालु बाबा चन्द्रमोली को जल चढ़ाने आते हैं लेकिन महाशिवरात्रि के दिन तो इसका नजारा अलग ही होता है। महाशिवरात्रि के दिन शहर व आस-पास गांवों की हजारों की संख्या में लड़कियां व औरतें दोनों समय बाबा भोले शंकर के शिवलिंग पर जल चढ़ाकर पूजा अर्चना करती हैं।  इसके अतिरिक्त महिलाएं भजन कीर्तन भी करती हैं। मेला आयोजक महेश जोशी ने बताया कि महाशिवरात्रि पर मंदिर परिसर मे भण्डारे का आयोजन भी किया जाता है। उन्होने कहाकि मोदाश्रम मन्दिर की स्थापना लगभग 104 वर्ष पूर्व हुई थी। इस मन्दिर की स्थापना से पूर्व की एक घटना है कि गुलाब राय लोहिया नामक व्यक्ति उस समय बुचयावाली मन्दिर में सुबह शाम जाते थे और आते-जाते  कुछ क्षण के लिए दोहान नदी के पास पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम के लिए बैठ जाते थे। एक दिन गुलाब राय को स्वप्न में भगवान शिव का दृष्टांत हुआ। स्वप्र में उन्हें लगा जिस पीपल के पेड़ के नीचे वो विश्राम करते थे वहां एक आवाज आई कि मुझे इस मिट्टी नीचे से निकाल ले। तब गुलाब राय ने अपनी इस घटना को बड़े बुजुर्गों और विद्वानों को बताई। विद्वानों और बुजुर्गो के कहने पर उन्होंने वहां पर खुदाई करवाई और वहां पर एक लगभग चार-पंाच फीट की एक मंढी निकली। इसके बाद सभी गुलाब राय ने वहां पर दोनों समय जल चढ़ाना व पूजा अर्चना शुरु कर दिया। गुलाब राय के कोई लड़का नहीं था। उनका वंश रुका हुआ था उनके पौते बजरंग लाल लोहिया ने बताया कि उनके दादा गुलाब राय खुद दत्तक पुत्र थे। उन्होंने बताया कि उनको एक दिन फिर भोले शंकर स्वप्र में दिखाई दिए और कहा कि 'मैं तूझे एक बेटा देता हूँ इसका नाम भोला रखना। ठीक एक वर्ष बाद उनको पुत्र की प्राप्ति हुई और उनका नाम भोला रखा। इसी खुशी में गुलाब राय ने अपने खर्चे पर यहां मोदाश्रम के बाहर मेला लगाया। इसके धीरे-धीरे चन्दे और दान से चैत्र और श्रावण माहस में मेला लगाया जाने लगा। इसी चन्दे से आज यहां एक विशाल मन्दिर का रूप ले लिया।