एनसीआर में घटता भू जल स्तर, अभी भी नहीं हुए सतर्क तो बूंद बूंद के लिए तरसेगा गुरुग्राम...

हरियाणा में भूजल स्तर लगातार घटता जा रहा है। पिछले एक दशक में लगभग दोगुना भूजल का स्तर घटा है। घट रहे भूजल स्तर को देखते हुए नीति आयोग ने भी 2020 में मेट्रोपॉलिटन सिटी (जिसमें दिल्ली एनसीआर भी शुमार है) में जीरो ग्राउंड वॉटर होने का अनुमान लगाया था। ऐसे में लगातार घट स्तर के कई कारण है और कैसे उसको हम इस स्तर को बढ़ा सकते हैं |

एनसीआर में घटता भू जल स्तर, अभी भी नहीं हुए सतर्क तो बूंद बूंद के लिए तरसेगा गुरुग्राम...

गुरुग्राम (संजय खन्ना) || भूजल स्तर के मामले में दिल्ली-एनसीआर सहित गुरुग्राम रेड जोन में शुमार है। जिसे देखते हुए यहां जल संरक्षण आज की सबसे बड़ी जरूरत है। दरअसल साल 1980 में जहां गुरुग्राम की आबादी 1 लाख के आसपास थी तो वहीं अब यह 26 लाख के आंकड़े को भी पार कर चुकी है। बढ़ती आबादी, शहरीकरण और औद्योगीकरण के बीच यहां पर भूमिगत जलस्तर तेजी से प्रभावित हुआ है। तेजी से भूजल स्तर घटता जा रहा है। जिसका खामियाजा आने वाले कुछ सालों में लोगों को भुगतना पड़ सकता है। वहीं विशेषज्ञों की मानें तो इसमें सुधार के लिए सामूहिक प्रयास का होना जरूरी है। घट रहे भूजल स्तर को लेकर हमने हरियाणा की इरीगेशन डिपार्टमेंट के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर डॉक्टर शिव सिंह रावत से खास बातचीत की। दरअसल हरियाणा के कैनाल और क्रॉप्स को लेकर शिव सिंह रावत ने आईआईटी दिल्ली से पीएचडी की हुई है। डॉक्टर शिव सिंह रावत बीते कई सालों से हरियाणा में घटते जल स्तर पर काम कर रहे हैं। रावत ने बताया कि गुरुग्राम ही नहीं पूरे एनसीआर क्षेत्र के लिए भूमिगत जल में गिरावट चिंता का विषय है। भूमिगत जल को रिचार्ज करने के लिए गंभीरता से प्रयास करना बेहद जरूरी है। ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में गुरुग्राम समेत हरियाणा के कुछ बड़े जिलों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। इस बार गुरुग्राम वासियों को दोहरी मार झेलनी पड़ेगी पड़ सकती है। जहा एक तरफ कोरोना का कहर बढ़ता जा रहा है तो दूसरी और पानी की किल्लत का सामना लोगो को करना पड़ सकता है। गुरुग्राम जल संकट का बड़ा केंद्र है। जहां भूमिगत जलस्तर लगातार कम होता जा रहा है। इसे बढ़ाने के लिए बस औपचारिकता ही नहीं ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।डॉ शिव सिंह रावत की मानें तो बारिश के बूंद बूंद पानी को बचाने के लिए रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को बढ़ावा देने की जरूरत है क्योंकि मानसून आने वाला है और बारिश का हज़ारो लीटर पानी को इस्तेमाल करके भू जल को रिचार्ज कर सकते है और अरबों लीटर पानी को बचा सकते हैं। जो हर साल बर्बाद हो जाता है। वहीं दूसरी और शहरीकरण के नाम पर वन क्षेत्रों को खत्म नहीं किया जाए, प्रकृति नालों को फिर से स्थापित करना होगा, गांव-गांव में जोहडो का जीर्णोद्धार करना होगा। 2009 में जहां गुरुग्राम का जलस्तर 25.74 मीटर था तो वहीं 2018 में यह 36.4 मीटर हो गया है और बीते 10 सालों से 11 मीटर के दर जे ये जलस्तर घटा है। यानी हर साल 1.1 मीटर (यानी 3.5 फीट) जल स्तर घटता जा रहा है। ऐसे में अब सरकार प्रशासन और आमजन को अपनी विशेष भूमिका निभानी होगी क्योंकि जल है तो कल है।