गुरुग्राम में नूंह हिंसा की आंच से उद्योग होने लगे ठप

हालांकि प्रशासन और सरकार प्रवासियों को आश्वस्त कर रही है कि प्रवासी भी हरियाणा प्रदेश में पूरी तरह से सुरक्षित हैं, लेकिन ज्यादातर श्रमिक ऐसे हैं जो वापस ही नहीं लौटना चाहते। यहीं कारण है कि ज्यादातर उद्योगों में श्रमिकों की संख्या अचानक 50 प्रतिशत से भी कम हो गई है। अपने पैतृक गांव लौट चुके प्रवासी श्रमिकों को वापस बुलाने के लिए उद्योगपति तरह-तरह के यत्न कर रहे हैं, लेकिन यह सभी यत्न विफल साबित हो रहे हैं।

गुरुग्राम || नूंह मेवात दंगो की आंच गुरुग्राम में आने के बाद अब ये आंच उद्योगों पर पड़ती दिखाई दे रही है। हालांकि हिंसा शांत हो गई है, लेकिन लोगों के मन में बैठा डर उद्योगों को ठप करने में लगा है। हिंसा का डर प्रवासी श्रमिकों के जहन में इस कदर बैठा है कि श्रमिक गुड़गांव को छोड़कर वापस अपने पैतृक गांव लौट रहे हैं। हालात सामान्य होने के बाद भी श्रमिक वापस लौटने को तैयार नहीं है। हालांकि प्रशासन और सरकार प्रवासियों को आश्वस्त कर रही है कि प्रवासी भी हरियाणा प्रदेश में पूरी तरह से सुरक्षित हैं, लेकिन ज्यादातर श्रमिक ऐसे हैं जो वापस ही नहीं लौटना चाहते। यहीं कारण है कि ज्यादातर उद्योगों में श्रमिकों की संख्या अचानक 50 प्रतिशत से भी कम हो गई है। अपने पैतृक गांव लौट चुके प्रवासी श्रमिकों को वापस बुलाने के लिए उद्योगपति तरह-तरह के यत्न कर रहे हैं, लेकिन यह सभी यत्न विफल साबित हो रहे हैं। गुड़गांव इंडस्ट्रियल एसोसिएशन की मानें तो गुड़गांव के उद्योग विहार, सेक्टर-37, मानेसर, सोहना की गारमेंट्स कंपनियों को परेशानी हो रही है। अभी सरकार रोजका मेव में आईएमटी सोहना के नाम से इंडस्ट्रियल टाउन विकसित कर रही है जिस पर भी सीधा असर पड़ रहा है।

हिंसा का सबसे अधिक असर गारमेंट्स और रियल इस्टेट उद्योगों पर पड़ा है। इन उद्योगों में करीब 50 फीसदी श्रमिक मुस्लिम समुदाय के हैं। उद्योगपतियों की मानें तो गुड़गांव में भी कुछ स्थानों पर छुट-पुट हिंसा के दौरान कुछ मुस्लिम लोगों के घरों पर पथराव किया गया। कहीं दुकानें तोड़ी गई तो कहीं मारपीट का मामला भी सामने आया। इन घटनाओं का डर इन श्रमिकों के मन में इस कदर बैठा है कि वह इन घटनाओं को भुलाकर अभी आगे बढ़ना नहीं चाहते। वह अपने गांव लौट चुके हैं। वापस बुलाने के लिए उनकी तरफ से श्रमिकों को 50 फीसदी तक सेलरी में भी इजाफा करने का ऑफर दिया है, लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। सुरक्षा की गारंटी लेने के बाद भी श्रमिक वापस लौटने को तैयार नहीं है। 
उद्योगपतियों की मानें तो उनके ऑर्डर अधूरे पड़े हुए हैं। सबसे अधिक असर अब एक्सपोर्ट कंपनियों पर पड़ने लगा है। समय पाबंद ऑर्डर होने के कारण उन्हें डर लग रहा है कि कहीं उनके ऑर्डर डिले न हो जाएं। फैक्ट्रियों में 50 फीसदी से अधिक मशीने बंद पड़ी हुई हैं। ऐसे में उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। बहरहाल उद्योगपतियों ने सरकार और प्रशासन से भी अपील की है कि वह प्रदेश में शांति व्यवस्था बनाए रखने के साथ ही श्रमिकों को वापस बुलाने के लिए भी प्रयास करें ताकि उद्योगों को भी नुकसान न हो।