महेंद्रगढ़ के मोदाआश्रम मंदिर मे शिवरात्रि के पर्व पर भगवान शंकर का ज्लाभिषेक करने के लिए उमड़ी श्रद्धालुओ की भीड़।
[sushil sharma , mohinder garh ] महेंद्रगढ़ के मोदाआश्रम मंदिर मे शिवरात्रि के पर्व पर भगवान शंकर का ज्लाभिषेक करने के लिए उमड़ी श्रद्धालुओ की भीड़। हर-हर महादेव के जयकारों से गूंजायमन होने लगा मंदिर परिसर। दूर दराज से लाखों लोग आकर चढ़ाते है जल तथा मांगते है मन्नतें।
मेला आयोजक महेश जोशी ने बताया कि उन्होंने कहा कि भगवान यहां स्वयं प्रकट हुए थे। हमारा यह 227 व शिवरात्रि मेला है। शिवरात्रि का अपना एक विशेष महत्व होता है। उन्होंने बताया कि श्रावण मास की शिवरात्रि पर डाक कावड़ लेकर, खड़ी कावड़ लेकर बैठी कावड़ लेकर अनेक श्रद्धालु मंदिर में आकर गंगाजल भगवान भोलेनाथ के चरणों में अर्पित करते हैं। उन्होंने बताया कि जो भी सच्ची श्रद्धा से भगवान भोलेनाथ के इस मंदिर में आकर अपनी प्रार्थना करता है उसकी भगवान मनोकामना आवश्यक पूर्ण करते हैं। शिवरात्रि पर मंदिर परिसर मे भण्डारे का आयोजन भी किया जाता है। उन्होने कहाकि मोदाश्रम मन्दिर की स्थापना लगभग 104 वर्ष पूर्व हुई थी। इस मन्दिर की स्थापना से पूर्व की एक घटना है कि गुलाब राय लोहिया नामक व्यक्ति उस समय बुचयावाली मन्दिर में सुबह शाम जाते थे और आते-जाते कुछ क्षण के लिए दोहान नदी के पास पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम के लिए बैठ जाते थे। एक दिन गुलाब राय को स्वप्न में भगवान शिव का दृष्टांत हुआ। स्वप्र में उन्हें लगा जिस पीपल के पेड़ के नीचे वो विश्राम करते थे वहां एक आवाज आई कि मुझे इस मिट्टी नीचे से निकाल ले। तब गुलाब राय ने अपनी इस घटना को बड़े बुजुर्गों और विद्वानों को बताई। विद्वानों और बुजुर्गो के कहने पर उन्होंने वहां पर खुदाई करवाई और वहां पर एक लगभग चार-पंाच फीट की एक मंढी निकली। इसके बाद सभी गुलाब राय ने वहां पर दोनों समय जल चढ़ाना व पूजा अर्चना शुरु कर दिया। गुलाब राय के कोई लड़का नहीं था। उनका वंश रुका हुआ था उनके पौते बजरंग लाल लोहिया ने बताया कि उनके दादा गुलाब राय खुद दत्तक पुत्र थे। उन्होंने बताया कि उनको एक दिन फिर भोले शंकर स्वप्र में दिखाई दिए और कहा कि 'मैं तूझे एक बेटा देता हूँ इसका नाम भोला रखना। ठीक एक वर्ष बाद उनको पुत्र की प्राप्ति हुई और उनका नाम भोला रखा। इसी खुशी में गुलाब राय ने अपने खर्चे पर यहां मोदाश्रम के बाहर मेला लगाया। इसके धीरे-धीरे चन्दे और दान से चैत्र और श्रावण माहस में मेला लगाया जाने लगा। इसी चन्दे से आज यहां एक विशाल मन्दिर का रूप ले लिया।