फेसबुक से हमारे दोस्त बढ़े हैं.. फिर हम इतने अकेले क्यों हैं
5 भी बहुत बड़ी संख्या लगती है, अगर उस लड़की की कहानी याद करूं, जिसने आत्महत्या से पहले फेसबुक पर लिखा था कि वो मरने जा रही है और लोगों ने मजाक समझकर उसकी पोस्ट लाइक कर दी. फेसबुक आज समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय बना हुआ है. पीट्सबर्ग यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन की रिसर्च कहती है कि सोशल मीडिया के कारण लोगों में अकेलापन बढ़ा है
सोशल मीडिया में सक्रिय 63 फीसदी लोगों के दिन की शुरुआत अपना फेसबुक एकाउंट चेक करने से होती है. अपने वयस्क जीवन से सोशल मीडिया से जुड़ा व्यक्ति अपने जीवन के कुल पांच वर्ष सोशल मीडिया पर बिताता है, रोज तकरीबन एक घंटा, 45 मिनट.कुछ याद है फेसबुक के पहले की जिंदगी, रिश्ते, रस्में कैसी थीं? कितने अधूरे, कितने पूरे? फेसबुक ने तय पाया कि हमारे दोस्तों की संख्या 5000 तक हो सकती है. उसने एक नया वर्चुअल मुहल्ला हमारे लिये बना के दे दिया.
सैकड़ों लोगों के बर्थडे, शादी, हनीमून से लेकर उनके कुत्ते के बर्थडे और हनीमून तक से हम अपडेट रहने लगे. कौन कहां छुट्टियां मना रहा है, किस रेस्टोरेंट में खा रहा है, क्या खा रहा है, कहां जा रहा है, किसने कहां नई नौकरी ज्वॉइन की, किसका रिलेशनशिप स्टटेस सिंगल से डबल होते हुए कॉम्प्लिकेटेड हो गया है, हम सूचित होते रहते हैं. कौन किसके पोस्ट लाइक कर रहा है, किस पर कमेंट कर रहा है, किसने किसके पोस्ट पर कमेंट और लाइक करना बंद कर दिया है और किस नई वॉल पर शुरू कर दिया है. कितने म्यूचुअल फ्रेंड हैं. कौन कहां क्या नेटवर्किंग कर रहा है, कौन सा लड़का किस लड़की की वॉल पर जेंडर सेंसिटिव कमेंट कर उसे इंप्रेस करने की कोशिश कर रहा है. कौन अमरीका जा रहा है और कौन झुमरी तलैया.मोबाइल खोलते ही एक भीड़ का बांध टूटता है और हमें बहा ले जाता है. रोज. रोज दो बार. या फिर और ज्यादा. जिनके 5000 दोस्त हैं, क्या वे नॉरमल लोग हैं या दोस्ती के मायने भी बदल गये हैं? क्या ये वर्चुअल दोस्त सचमुच दोस्त हैं? हकीकत की जमीन पर यह वर्चुअल दोस्ती कितनी देर तक टिक पाती है? ये कितनी सच्ची है? एंथ्रोपोलॉजिस्ट रॉबिन डनबर के दिमाग में ऐसे ही कुछ सवाल थे, जब 2016 में उन्होंने फेसबुक पर एक अध्ययन किया. अध्ययन में कुछ ऐसे सवाल पूछे गए थे.कितने ऐसे हैं, जिन्हें आप किसी संकट में रात 12 बजे भी बेहिचक फोन कर सकते हैं?सर्वे के आकड़े चौंकाने वाले थे. 5000 दोस्तों और हजारों फॉलोवरों वाली फेसबुक पीढ़ी के वास्तविक करीबी दोस्तों की संख्या महज 5 थी. वो ज्यादा से ज्यादा डेढ़ सौ लोगों को जानते थे, 15 को करीब से जानते थे और महज पांच लोग ऐसे थे, जिन्हें वो सचमुच अपना दोस्त कह सकते थे.