देश में नहीं घट रही लवारिश बच्चो की संख्या, विदेशियों की बढ़ रही भारत से बच्चे गोद लेने की संख्या,स्वदेशियों ने ठुकराया तो विदेशियों ने अपनाया
देश में बेटी बचाव बेटी पढाओ के नारे के बीच विदेशियों की संख्या लड़कियों को गोद लेने की संख्या साल 2013-14 में जंहा 308 थी वहीं आज बढ़कर ये संख्या 651 तक पहुच गई यानि पिछले लगभग 6 सालों में कुल 2699 बच्चो में से 2084 लड़कियों को विदेशी गोद नसीब हुई जिनमे लडको की संख्या 615 रही !
सरकार के किसी आवासीय योजना और आरक्षण के लाभर्थी नहीं अनाथ बच्चे ,18 साल की उम्र के बाद बाल आश्रम का दरवाजा बंद, देश में नहीं घट रही लवारिश बच्चो की संख्या, विदेशियों की बढ़ रही भारत से बच्चे गोद लेने की संख्या,स्वदेशियों ने ठुकराया तो विदेशियों ने अपनाया, देश में बाल उपवनो में बड रही लड़कियों की संख्या, खबर कारा की रिपोर्ट पर आधारित है देश में लवारिश बच्चो की मिलने की संख्या में कोई खास बदलाव नहीं हो रहा,, साल 2013-14 में लवारिश बच्चो की जहा 4354 थी आज कारा की रिपोर्ट ने अनुसार 4025 है वही रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में बेटी बचाओ बेटी पढाओ के नारे के बाद देशभर में लडकियों की संख्या में काफी उछाल आया है,,ये कहानी बदनसीबी से शुरू होकर बदलते नसीब की एक उम्मीद की है
जहा ढाई साल पहले कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर के पास अनाथ और जख्मी हालत में मिली बच्ची अंजली को हरियाणा के कैथल के बाल उपवन में लाया गया, अंजली अब ढाई साल की हो चुकी है और आगे की जिंदगी का सफर उन्हें भारत से बेल्जियम में पूरा करना होगा, अब अंजलि नए माता-पिता और दो नए भाई मिल चुके हैं पिता का नाम कृष और माँ मार्टिन सकूफ होंगी,,, मंगलवार को अंजली का निवास स्थान बाल उपवन आश्रम से बदलकर अब “क्रोमस सस्टराट बेल्जियम” होगा, नई मां की गोद में बैठी अंजलि नए परिवार के साथ घुल मिल गई और अपने छोटे दोस्तों को छोड़ते हुए नहीं रोई,, लेकिन ढाई साल की अंजलि को बेटी की तरह पालने वाली सोनिया और दीपाली खुशी और गम के दौर से गुजर रही थी,सोनिया की आंखों में आंसू थे क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले बेटी की तरह अंजलि को पाला था, साथ लगते वृद्धा आश्रम में रहने वाले जिन बुजुर्गों के साथ वो खेलती थी उन्होंने भी अंजलि को पोती की तरह भरे मन से ₹100 देकर अच्छे जीवन के लिए भारत से बेल्जियम की विदाई दी
,,,हरियाणा के कैथल जिले में आए बेल्जियम के परिवार ने अंजलि को पसंद किया और इंटरनेट पर प्रकाशित हुई अंजली की तस्वीर को देखकर उन्हें गोद लेने का फंसला लिया,, अच्छा हुआ, क्योंकि वैसे भी 18 साल बाद हमारे पास बाल आश्रमों में अनाथ बच्चों के लिए कोई जगह नहीं है और ऐसा ही होता जब अंजली 18 साल की होती और उन्हें आश्रम से निकाल दिया जाता, चाइल्ड ऑफिसर कुलदीप सिंह की मानें तो बाल उपवन में केवल 18 साल की उम्र तक के बच्चे ही आश्रम में रह सकते हैं, उसके बाद उन्हें बिना साधनों के समाज के मुख्यधारा में मिलना होता है ,, हालांकि यह अभी तक कहीं से भी स्पष्ट नहीं है कि बाल आश्रम में रहकर मुख्यधारा में कैसे आ सकते हैं क्योंकि 18 साल तक तो इनकी पढ़ाई ही पूरी होती है और उसके बाद इन्हें आगे की जिंदगी एक कटे हुए समाज के साथ बितानी होती है, बताया जा रहा है कि इन बच्चों की जिंदगी ना तो किसी आवासीय योजना का हिस्सा है और ना ही देश में आरक्षण के हिस्से में इनके कोई हिस्सेदारी सरकार द्वारा तय है,, शायद इसलिए क्योंकि इन बच्चों की कोई जाति और धर्म नहीं है,, देश में पाए जाने वाले बच्चों के मां-बाप की जगह आश्रम के संचालक का नाम इन्हें दिया जाता है और जब उन्हें कोई गोद ले लेता है तो उन्हें एक नए मां बाप का नाम मिलता है अगर इन्हें कोई गोद नहीं लेता तो बाकी की जिंदगी इन् बच्चो को दोबारा उत्पीड़ित बचपन की तरह गुजारनी होती है