किसानों द्वारा अधिक उत्पादन की चाह में फसलाें में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकाें व कीटनाशकाें का किया जाता है प्रयोग
इस मुहिम के साथ आस-पास के दर्जनभर से ज्यादा गांवों के पुरुष व महिला किसान जुड़े हुए हैं। इस पूरे अभियान की शुरुआत करने के पीछे का कारण है 2001 में एक अखबार में किसानों और कृषि विशेषज्ञों की कृषि विशेषज्ञों की विफलता को लेकर छपे छपे लेख में जिक्र किया गया था 36 बार कीटनाशक स्प्रे करने के बाद भी उत्पादन चार से पांच मण उत्पादन हुआ
जींद (परमजीत पवार) || किसानों द्वारा अधिक उत्पादन की चाह में फसलाें में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकाें व कीटनाशकाें का प्रयोग किया जाता है। इससे फसल में लागत अधिक बढ़ती जा रही है और उत्पादन कम होता जा रहा है। इससे किसान कर्ज के दलदल में फंसकर आर्थिक तौर पर कमजोर हो रहे हैं। लेकिन जींद जिले के किसानों द्वारा फसल में लागत को कम कर उत्पादन बढ़ाने के लिए कीट ज्ञान की अनोखी पद्धति इजाद की गई है। यहां के किसान पिछले दस वर्षों से कीट साक्षरता अभियान चला रहे हैं इसमें फसलों में मौजूद कीटों पर शोध कर रहे बिना कीटनाशक के खेती करने के लिए किसानों को जागरूक कर रहे हैंवर्ष 2008 में कृषि विकास अधिकारी डॉ- सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में निडाना गांव में कीटों पर शोध का कार्य शुरू किया गया था। इस मुहिम के साथ आस-पास के दर्जनभर से ज्यादा गांवों के पुरुष व महिला किसान जुड़े हुए हैं। इस पूरे अभियान की शुरुआत करने के पीछे का कारण है 2001 में एक अखबार में किसानों और कृषि विशेषज्ञों की कृषि विशेषज्ञों की विफलता को लेकर छपे छपे लेख में जिक्र किया गया था 36 बार कीटनाशक स्प्रे करने के बाद भी उत्पादन चार से पांच मण उत्पादन हुआ , जिसमें संपादक ने कहा यहां किसानों और कृषि वैज्ञानिकों की सांझी विफलता है , इसी बात से आहत होकर डॉक्टर सुरेंद्र दलाल ने कीटों को लेकर रिसर्च करना शुरू किया , साल 2008 में उन्होंने कीट की जानकारी किसानों को देने के लिए अभियान शुरू किया धीरे-धीरे यह अभियान बड़ा रूप लेने लगा और आसपास के कई किसान उनसे जुड़ गए , इस पूरे अभियान का नेतृत्व करने वाले डॉ सुरेंद्र दलाल का निधन साल 2013 में हो गया था लेकिन उसके बाद भी उनका यह अभियान लगातार फल फूल रहा है आज भी किसानों की कीट साक्षरता को लेकर लेकर साक्षरता को लेकर क्लास लगती है जिसमें कीटाचार्य सविता मनीषा वह रणबीर समेत कई किसान जानकारी देते हैं
कीटाचार्य सविता का कहना है कि फसल के लिए भी कीट जरूरी हैं क्योंकि कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर कीटों को आकृषित करते हैं। कीट दो प्रकार के होते हैं। एक शाकाहारी तथा दूसरे मांसाहारी। शाकाहारी पौधों, फल, फूलों को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं तो मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। यदि किसान शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए किसी प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करे तो मांसाहारी कीट उन्हें स्वयं ही नियंत्रित कर लेते हैं। कीटनाशकाें के प्रयोग से कीटों की संख्या कम होने की बजाए उल्टी बढ़ती है। मांसाहारी कीट फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं।