कितनी मजबूरी में बोलनी पड़ती हैं बेचारे मर्दों को इस तरह की बातें
मर्द इतनी इज्जत दे रहे हैं, इतना ख्याल कर रहे हैं. उस दिन जदयू नेता शरद यादव के फिक्र की इंतहा हो गई, जब वे राजस्थान की एक सभा में भरे मंच से वसुंधरा राजे के मोटापे पर बोलने लगे, “वसुंधरा को आराम दो, बहुत थक गई है…
पिछले महीने की बात है. पोलाची केस के बारे में आपने पढ़ा होगा. तमिलनाडु में कोयंबटूर से 45 किलोमीटर दूर पोलाची में एक गैंग सक्रिय था, जो महिलाओं से फेसबुक पर फ्रेंडशिप करता था, उनका भरोसा हासिल करता था, उनसे अंतरंग बातें करता था और फिर उन्हें ब्लैकमेल करता था. उसका शिकार हुए लोगों में जवान लड़कियों से लेकर उम्रदराज औरतें तक शामिल थीं.11 मार्च को एक वेबसाइट पर एक वीडियो पब्लिश हुआ. ब्लर किए हुए उस वीडियो में एक महिला रोते-चीखते लड़कों से गुजारिश कर रही थी कि मुझे नुकसान मत पहुंचाओ. ये उसी पोलाची गैंग का वीडियो था. ये लोग इस हद तक महिलाओं का भरोसा जी…कितनी मजबूरी में बोलनी पड़ती हैं बेचारे मर्दों को इस तरह की बातें जम्बूद्वीप में पुरुष नहीं होते, महापुरुष होते हैं. इन महापुरुषों की महिमा अपरंपार है. ये जब भी औरतों पर मुंह खोलते हैं तो भर-भर फूल झरने लगते हैं. ऐसे-ऐसे शब्द, ऐसे वाक्य, ऐसे जुमले बहते हैं कि जैसा उदाहरण दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलेगा.अभी संडे की ही बात ले लीजिए. समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान रामपुर में एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे. उनकी विपक्षी वहां एक महिला हैं, बीजेपी प्रत्याशी जया प्रदा. अब आजम खान ने जया प्रदा पर मुंह खोला तो ऐसा खोला कि बाकी सबके मुंह खुले रह गए. वे बोले, “जिसे हम उंगली पकड़कर रामपुर लाए,आपने 10 साल जिससे अपना प्रतिनिधित्व कराया... उनकी असलियत समझने में आपको 17 बरस लगे, मैं 17 दिन में पहचान गया कि इनके नीचे का अंडरवियर खाकी रंग का है.”अगर हमारी संस्कृति औरत को वस्तु समझती है तो हमारे नेताजी कैसे न बोलें, औरत को “सौ टका टंच माल.” इसलिए 2013 में मध्य प्रदेश में एक रैली में दिग्विजय सिंह ने मंदसौर से तत्कालीन सांसद मीनाक्षी नटराजन को “सौ टका टंच माल” बोला. वो बोले तो लोग बिलबिलाने लगे. भूल गए कि उनकी यही संस्कृति है. सिंह साहब तो सिर्फ संस्कृति का निर्वाह कर रहे थे.संस्कृति निबाहने में कोई पीछे नहीं. सबमें होड़ लगी है कि मुझसे बढ़कर कौन? इसलिए पिछले साल जब सपा ने जया बच्चन को राज्यसभा के लिए दोबारा नामांकित किया तो बीजेपी नेता नरेश चंद्र अग्रवाल सीना तानकर आगे आए और बोले, ये “फिल्मों में नाचने वाली” हैं. उनका गुस्सा भी जायज था. राज्यसभा में उनका कार्यकाल खत्म हो रहा था. वो ठहरे मर्द के पट्ठे, फिर भी उन्हें दोबारा कोई पूछ नहीं रहा था और जया बच्चन को महिला होने के बावजूद दोबारा नामांकित किया जा रहा था. जिस कुर्सी पर सदियों से सिर्फ मर्द बैठते आ रहे हैं, उस कुर्सी पर अब औरतें दावा कर रही हैं और दावा ही नहीं कर रहीं, कह रही हैं “संसद में 33 फीसदी आरक्षण दो.” गजब कलियुग आ गया है. साक्षी महाराज ने मेरठ में औरतों को जो काम सौंपा था, वो छोड़कर अब इन्हें संसद की कुर्सी चाहिए. उस बात पर तो औरतों ने ठीक से कान भी नहीं धरे कि “हर हिंदू औरत चार-चार बच्चे पैदा करे.”ये कलियुग ही है कि अपना काम छोड़कर अब औरतें राजनीति सिखाने लग पड़ी हैं. इसीलिए 2012 में एक टीवी शो के दौरान कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने स्मृति ईरानी का दिमाग ठिकाने लगाते हुए कहा, “कल तक आप पैसे के लिए ठुमके लगा रही थीं और आज राजनीति सिखा रही हैं