एक ऐसा मंदिर जहां पर सूर्य ग्रहण का कोई असर नहीं पड़ता...
भारत के गौरवमयी इतिहास को संजोय एक ऐसा सूर्य मन्दिर जो की हरियाणा के जिला यमुनानगर के गांव अमादलपुर में है !जहाँ सूर्य ग्रहण का कोई प्रभाव नही पड़ता!इसलिये सूर्य ग्रहण के दिन साधू संत और श्रद्धालु दूर दूर से यहाँ आते है !इस मंदिर का सम्बंध त्रेता युग से है । पांडवो ने भी इसी सूर्य मन्दिर में स्नान कर पूजा अर्चना की और इस मन्दिर की ऐसी मान्यता है की यहाँ के सूरज कुण्ड में स्नान करने से सभी रोग दूर हो जाते है !वही पूरे भारत वर्ष में सूर्य कुंड मन्दिर केवल दो ही है एक यमुनानगर के अमादल पुर में जो सूर्यवंश से सम्बंधित है और दूसरा उड़ीसा के कोणार्क में जो चन्द्रवँशी से सम्बंधित है।लेकिन कोरोनॉ के चलते सूर्य ग्रहण पर दिखने वाली श्रद्धालुओं की रौनक इस बार इस इतिहासिक मन्दिर में नही दिखाई देगी।
यमुनानगर (सुमित ओबेरॉय) || हरियाणा के यमुनानगर मे प्राचीन सूर्यकूण्ड मन्दिर जहा सूर्यग्रहण के समय सूर्यग्रहण का कोई असर नही होता। पूरे भारत वर्ष मे केवल दो ही ऐसे मन्दिर है, जहा सूर्यग्रहण का कोई असर नही पडता। सूर्यग्रहण के मौके पर भी ये दोनो मन्दिर खुले होते है। बताया जाता है कि भारतवर्ष मे इस तरह के 68 कुण्ड है।लेकिन पूरे भारतवर्ष मे सूर्यकुण्ड मन्दिर केवल दो ही है।सूर्यग्रहण के अवसर पर जहा देश भर मे मन्दिर बंद रहते है वही यमुनान्रगर मे सूर्यकुण्ड मन्दिर खुला होता है। पूरे भारतवर्ष मे केवल दो ही एसे मन्दिर है,जो सूर्यग्रहण के समय भी खूले रहते है। वही उड़ीसा के कोनार्क और हरियाणा के यमुनानगर स्थित सूर्यकुण्ड मन्दिरपर सूर्यग्रहण का कोई प्रभाव नही पडता। यमुना के किनारे स्थित प्राचीन सूर्यकुण्ड मन्दिर देश के कोने-कोने से साधु-संत यहा पर आते है।सूर्यग्रहण के दौरान ये साधु-संत सूर्यदेव का जाप करते है। वही श्री श्री 108 स्वामी आख़िला नन्द ब्रह्मचारी जी ने बताया कि सूर्यग्रहणके समय जो भी मन्दिर के प्रागंण मे आने-वाले किसी भी प्राणी पर ग्रहण का कोई असर नहीपडता। वही स्वामी जी का कहना है,कि मन्दिर के प्रागंण मे सूर्यकुण्ड इस प्रकार से बना है किसूर्य की किरणे इस प्रकार पडती है,वो कुण्ड मे ही समा जाती है। वही स्वामी जी ने बताया कि त्रेता के युग से सम्बंध है। सूर्यवंश के राजा मंधाता हुए सूर्यवंश से भगवान राम से 43 पीढ़ी पहले भगवान राम 63वी पीढ़ी में आये राजा मन्धाता 20वी पीढ़ी में हुए ।उन्होंने सौभरी ऋषि को आर्चाय बना कर राज सूर्ययज्ञ किया। उन यज्ञी में देवता भी भाग लेने स्वयं आते थे। जहाँ देवताओ का पदार्पण हुआ जहाँ भगवान के चरण पड़े उस भूमि पर कोई दूषित कार्य न हो । मंधाता के ऋषि ने यज्ञ भूमि को खुद वा कर उस मे पानी भर वा दिया और इस कुण्ड का नाम सूर्यकुण्ड रख दिया। स्वामी जी ने बताया कि पूरे भारतवर्ष मे इस तरह के 68कुण्ड है। लेकिन पूरे भारतवर्ष मे सूर्यकुण्ड मन्दिर केवल दो ही है।एक ये तो सूर्यवंशी का रहा। और उड़ीसा के कोणार्क स्तिथ सूर्य मंदिर वो चन्द्रवंशियों का है। जो भगवान श्री कृष्ण जी के लड़के थे जामवंती से उनके द्वारा वो बनाया गया था सूर्य नारायण की आराधना से उनकी निर्मल काया हुई ।तभी वहाँ वो बना ऐसी इसकी परम्परा पीछे से चली आ रही है।वही सूर्य ग्रहण का प्रभाव यहाँ क्यों नही पड़ता इसका कारण ये है जो कुंड का जो जल है जल को जो आयता कार से बना हुआ है इसमें सूर्य की किरणें जो रहती है वो वापिस नही जाती आंशिक रूप से सूर्य यहाँ रहने के कारण सूर्य का प्रभाव उतना नही पड़ता।वही देश के कोने कोने से श्रद्धालु यहां आते है । कोरोना के चलते जहां सूर्य ग्रहण के चलते कई जगह पर लगने वाले मेले और होने वाले धार्मिक कार्यक्रम स्थगित कर दिए है वही यहाँ से भी रोनक गायब रहेगी।लेकिन ये मंदिर प्राचीन इतिहास और कई गाथाओ ,को अपने अंदर सँजोए हुए है।