जानलेवा सेप्सिस रोगियों के लिए थाइमोसिन अल्फा 1 मोलेक्यूल है वरदान...
जानलेवा सेप्सिस रोगियों के लिए थाइमोसिन अल्फा 1 मोलेक्यूल है वरदान...
गुरुग्राम स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ क्रिटिकल केयर एंड एनेस्थिसियोलॉजी, मेदांता-द मेडिसिटी हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ. यतिन मेहता की माने तो जानलेवा सेप्सिस रोगियों के लिए थाइमोसिन अल्फा 1 मोलेक्यूल उपचार के लिए किसी वरदान से कम नही है। अब तो गुफिक बायोसाइंसेज को कोविड -19 उपचार के लिए एड-ऑन थेरेपी के रूप में थाइमोसिन अल्फा 1 को डीसीजीआई की मंजूरी भी मिल गई है। डॉक्टर यतिन की माने तो कोविड-19 की चपेट में आए ऐसे सामान्य से लेकर गंभीर मरीजों तक, जिन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट (एनआईवी के साथ-साथ मैकेनिकल वेंटिलेशन) की जरूरत होती है
Gurugram (Sanjay Khanna) || गुरुग्राम स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिटिकल केयर एंड एनेस्थिसियोलॉजी, मेदांता-द मेडिसिटी हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ. यतिन मेहता की माने तो जानलेवा सेप्सिस रोगियों के लिए थाइमोसिन अल्फा 1 मोलेक्यूल उपचार के लिए किसी वरदान से कम नही है। अब तो गुफिक बायोसाइंसेस को कोविड -19 उपचार के लिए एड-ऑन थेरेपी के रूप में थाइमोसिन अल्फा 1 को डीसीजीआई की मंजूरी भी मिल गई है। डॉक्टर यतिन की माने तो कोविड-19 की चपेट में आए ऐसे सामान्य से लेकर गंभीर मरीजों तक, जिन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट (एनआईवी के साथ-साथ मैकेनिकल वेंटिलेशन) की जरूरत होती है, उनके उपचार के लिए गुफिक बायोसाइंसेज लिमिटेड (गुफिक) को एड-ऑन थेरेपी के रूप में थाइमोसिन अल्फा-1 के लिए डीसीजीआई ने मंजूरी दे दी है। सेप्सिस के लिए पैथोफिजियोलॉजी और नैदानिक लक्षण कोविड-19 के समान ही हैं। थाइमोसिन अल्फा 1 एक इम्यूनो-मॉड्यूलेटर दवा है, जो वेंटिलेटर या आईसीयू में कई दिनों तक पड़े रहने की अवधि को कम करने के साथ-साथ मृत्यु के जोखिम को कम करती है, वहीं विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों से भी इस बात की पुष्टि हुई है कि यह दवा अस्पताल में लंबे समय तक भर्ती रहने की अवधि को भी कम करने में कारगर है।
जीवन को खतरे में डालनेवाली जटिलताएं पैदा कर देनेवाली गंभीर संक्रामक बीमारी सेप्सिस के मामले भारत में तेजी से बढ़ते देखे जा रहे हैं। मौजूदा हालात ऐसे हैं कि समूचे भारत में आईसीयू में भर्ती दो में से लगभग एक मरीज सेप्सिस से प्रभावित है। सेप्सिस के ऐसे गंभीर मरीजों के बचने की संभावना बेहद कम होती है या यूं कहें कि ऐसे मामलों में मृत्यु दर बहुत अधिक होती है। अमूमन सेप्सिस की समस्या तब चपेट में लेती है जब किसी संक्रमण से लड़ने के लिए रक्तप्रवाह में रिलीज रसायन पूरे शरीर में सूजन-जलन (प्रदाह) की समस्या पैदा कर देते हैं। यह समस्या इस तरह की जटिलता पैदा कर सकती है कि कई अंग प्रणालियों को इतना गंभीर नुकसान पहुंचता है कि वे काम करना बंद कर देती हैं। ऐसे मामलों में कई बार मरीज की मौत हो जाती है। इसके लक्षणों में बुखार, सांस लेने में कठिनाई, निम्न रक्तचाप, तेज हृदय गति आदि शामिल हैं।
गुफिक बायोसाइंसेज के सीओओ डॉ देबेश दास की माने तो मेडिकल बिरादरी को तत्काल सेप्सिस के खतरे से लड़ने के लिए कई और उपकरणों की जरूरत है, जो मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण है और दुनिया भर में सामाजिक स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को प्रभावित करते है। कोविड-19 के मध्यम से लेकर गंभीर रोगियों तक के उपचार के लिए एक ऐड-ऑन थेरेपी के रूप में थाइमोसिन को लेकर मिले ठोस परिणामों को देखते हुए हम आशान्वित हैं कि इम्यूनोसिन ए सेप्सिस से लड़ने के वैश्विक प्रयासों के बीच एक महत्वपूर्ण दवा बन सकती है और यह संक्रामक रोगों के मामलों में मरीजों को सबसे अधिक जरूरत होने पर उपचार को और अधिक समृद्ध करेगी। गुफिक जीवन बचाने और सुधारने के लिए अथक रूप से प्रतिबद्ध है।