तीजो में तीज हरसोला की तीज...
एक तरफ जहां देश में प्राचीन परम्परा दिन प्रति दिन विलुप्त होती जा रही है, वही कैथल के गांव हरसोला की महिलाओं ने अब की बार इस को झुठलाते हुये एक नया इतिहास रच रही है। तीज के अवसर पर गांव के बाबा महेश गिरी के आसन में लगभग सैकड़ों महिलाओं ने जमकर झूले के साथ- साथ ठुमके भी लगाये। जिसको देख कर लगा कि हमारी प्राचीन परम्परा विलुप्त न हो कर और अधिक बढ़ रही है।
कैथल (विपिन शर्मा) || सवान महीने में मानसून की ठंडी फुहारों के बीच हरियाणा के ग्रामीण आंचल के देहात से जुड़े तीज के त्यौहार का अपना एक विशेष महत्व है। सावन महीना शुरू होते ही गांव के लोग अपनी शादीशुदा बेटियों को तीज की तील, मेंहदी, घेवर, पतासे व घर में बने पकवान को कोथली के रूप में भेजते है। अपने घर से कोथली में आई इसी मेंहदी को बेटी अपने ससुराल में तीज के त्योहार पर लगाकर झूला झूलती थी।
ऐसे में शादीशुदा बेटियों के लिए सावन के त्यौहार तीज का अपना एक लगाव रहा है। बदलते परिवेश में युवा पीढ़ी इनकी महत्ता से अनभिज्ञ होती जा रही है और मनाये जाने वाले त्योहारों पर निश्चित रूप से लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। अब लोग घर तक ही त्योहारों को मनाने में सीमित हो गए हैं। पहले कई-कई दिन पहले पेड़ों पर झूले डल जाते थे, लेकिन आजकल शहरों में तो ये दिखाई नहीं देते। गांव में भी धीरे-धीरे झूले कम होने लगे है । लेकिन कैथल का एक गांव हरसोला में इस परंपरा को पिछले काफी सालों से तीज का त्यौहार दिवाली के त्यौहार की तरह बनाया जाता है।
सावन में पूरे गांव की महिलाएं दोपहर के बाद इकट्ठा होती हैं और तीज के गीत गाती है और झूला झूलती है यह उत्सव अपने आप में एक अनूठा उत्सव है क्योंकि झूला झूलने का रिवाज तो पुराना है परंतु इस गांव के तीज के त्यौहार की बात करें तो 15 दिनों तक चलता है। महिलाए पेड़ों के पास झूला डालती हैं और झूला झूलती है और अपने पारंपरिक गीत गाते हुए नाचकर इस त्योहार का आनंद लेती है। गांव में हरियाली तीज का पर्व हर साल इसी आसन में मनाया जाता है। सुबह से महिलायें इस आसन में आकर झुला पाकर झूलती है। गांव की लगभग सभी महिलायें यहां आती है। जिसको झुला झुलना है तो वह झुला झूलती है और बाकी नाचने गाने पर ध्यान देती है। प्राचीन धार्मिक गानों की धुन पर लगभग प्रत्येक महिला नाचती है। इस नाच गाने में उनको कोई दखल नही होता। यह कार्य क्रम सारा दिन चलता है।। महिलायें नाच गाने में इतनी विभोर होती है कि पता नही चलता कि समय कब बीत गया। यह पर्व वैसे तो गांव में सावन लगते ही शुरू हो जाता है और तीज धूम रहती है।