परंपरागत खेती छोड़ बागवानी ने किसान महेंद्र सिंह की बदली तस्वीर

कृषि विशेषज्ञ डॉ. चंद्रभान श्योराण का कहना है कि किसानों की आय डबल करने के लिए सरकार प्रयासरत है और किसानों को हर संभव मदद की जा रही है। सरकार किसानों के लिए नई-नई स्कीम लेकर आ रही है। नई स्कीमों के माध्यम से किसानों को अनुदान दिया जा रहा है ताकि किसान समर्थ बन सके।

चरखी दादरी || रेतीली जमीन पर परंपरागत खेती छोड़कर बागवानी अपनाने वाले किसान महेंद्र सिंह की तस्वीर बदली गई है। किसान ने वर्ष 2007 में चार एकड़ से मौसमी व रेड माल्टा का बाग लगाया था और अब 7 एकड़ में लगाए बाग से 25 लाख रुपये की सालाना कमाई कर रहा है। साथ ही अपनी नर्सरी तैयार कर साथ लगती 7 एकड़ में भी मौसमी, रेड माल्टा का बाग लगाकर कमाई का दायरा बढ़ा दिया। किसान महेंद्र सिंह का कहना है कि प्रधानमंत्री की किसानों के दोगुनी आय करने से प्रेरणा ले बागवानी की खेती को अपनाया तो अन्य किसानों के ने भी अब बागवानी की खेती शुरू कर दी है। दक्षिण हरियाणा में अधिकतर जमीन रेतीली है और यह क्षेत्र प्रदेश के अंतिम छोर पर पड़ने के कारण यहां की जमीन पर हमेशा ही सिंचाई के पानी की कमी रहती है। बरानी जमीन में खेती पूरी तरह बारिश पर निर्भर है। परंपरागत खेती से आमदनी नाममात्र होती है। ऐसे में गांव कान्हड़ा निवासी किसान महेंद्र सिंह ने अतिरिक्त कमाई का जरिया खोजा अौर वर्ष 2007 में उन्होंने चार एकड़ में बाग लगाया। आमदनी अच्छी होने लगी तो अपनी कमाई का दायरा बढ़ाते हुए 7 एकड़ में मौसमी व रेड माल्टा की खेती शुरू कीद्ध इससे परंपरागत कृषि के साथ-साथ अतिरिक्त आमदनी शुरू हो गई। अब किसान महेंद्र सिंह की करीब 25 लाख रुपये सालाना कमाई हो रही है। किसान ने अपने खेत में ही नर्सरी लगाकर पौधे तैयार किए और इस बार भी 7 एकड़ जमीन में मौसमी व रेड माल्टा का बाग लगा अपनी कमाई का दायरा बढ़ाया है।

कुछ करने के जज्बे ने किसान महेंद्र सिंह को आसपास के गांवों में अलग पहचान दिलवाई है तथा इनके बाग को देखकर अन्य किसानों ने भी बाग लगाने शुरू किए हैं। महेंद्र सिंह अन्य किसानों के लिए प्रेरणा देने का काम कर रहे हैं। वे अपने खेत में ही पौधे तैयार कर अन्य किसानों को बेचकर कमाई बढ़ा रहे हैं। उन्होंने सरकार से अनुदान राशि लेते हुए खेत में प्रोसेसिंग मशीन के अलावा नेट हाउस भी लगाया है।

बरानी और बंजर जमीन में कमाई कर बने आत्मनिर्भर

किसान महेंद्र सिंह ने बताया कि उनके गांव की अधिकतर जमीन पानी की कमी के कारण बरानी रह जाती है। बरानी जमीन में सिंचाई के अभाव में फसल उत्पादन काफी कम होता था। उन्होंने इस जमीन में कम पानी से पैदावार लेने का फैसला किया और कृषि विभाग अन्य संसाधनों से जानकारी लेकर वर्ष 2007 में चार एकड़ में बाग लगाया। बाद में इनकम बढ़ने लगी तो बाग का दायरा बढ़ा दिया। अब सात एकड़ से उसे करीब 25 लाख रुपए की सालाना आय हो रही है।