ना पास पैसे और ना ही साधन हैं फिर भी गरीबों की सेवा का जुनून
संजय कहता है कि झुग्गी झोपड़ी कच्ची बस्ती में रहने वाले लोगों की आर्थिक स्थिति अधिक मजबूत नहीं होती है। अच्छे कपड़े खरीदने की बात तो दूर घर खर्च चलाना उनके लिए मुश्किल होता है। ऐसे लोगों की मदद के लिए कपड़ा बैंक खोलने का विचार मन में आया, जहां से लोग अपनी पसंद के कपड़े बिना रोक ले जाएं।
चरखी दादरी। ना पास में पैसा और ना ही कोई साधन, फिर भी मायानगरी मुम्बई में अभिनय के दौरान गरीबों की हालत देखी तो सेवा करने का संकल्प लिया। करीब सात साल से खुशियों की दिवार का संचालन करते हुए रंगकर्मी संजय रामफल अब तक हजारों गरीब व असहायों को कपड़ों सहित जरूरत का सामान वितरित कर खुशियां बांट रहे हैं। अकेले की झुग्गियों व ईंट-भट्ठों पर टैंपा लेकर जरूरतमंदों की सेवा करने पहुंच जाते हैं। संजय के इस जनसेवा का जुनून की पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है।
चरखी दादरी निवासी रंगकर्मी संजय रामफल खुशियों की दीवार से एकत्रित किए सामान को जरूरतमंदों को देकर रिश्तों की मुस्कान लाने का कार्य कर रहा है। करीब सात वर्ष पहले दादरी के जिला न्यायालय परिसर में खुशियों की दीवार अभियान की शुरुआत की थी। साथ ही उन्होंने यहां कपड़ा बैंक चला रखा है, जहां से कोई भी व्यक्ति अपनी जरूरत के कपड़े ले जा सकता है। अब तक हजारों लोगों को उनकी जरूरत के मुताबिक कपड़े बांटे जा चुके हैं। संजय अकेले ही टैम्पो में एकत्रित सामान को लेकर गरीबों के बीच पहुंचते हैं। उनकी जैसे ही खोलें अपनी खुशियों का पिटारा की आवाज सुनती है तो गरीब टैम्पों की ओर दौड़ पड़ते हैं।
गरीबों की हालत देखी तो शुरु किया अभियान
रंगकर्मी संजय रामफल कहते हैं कि वह मायानगरी मुम्बई में काफी वर्षों तक रहा है। गरीबों की हालत देखी तो उसने सेवा करने का अभियान चलाया। ना पास पैसे और ना ही साधन हैं फिर भी गरीबों की सेवा का जुनून लिए स्वयं ही गरीबों के बीच पहुंच जाता है और उनकी सेवा करता है। संजय कहता है कि झुग्गी झोपड़ी कच्ची बस्ती में रहने वाले लोगों की आर्थिक स्थिति अधिक मजबूत नहीं होती है। अच्छे कपड़े खरीदने की बात तो दूर घर खर्च चलाना उनके लिए मुश्किल होता है। ऐसे लोगों की मदद के लिए कपड़ा बैंक खोलने का विचार मन में आया, जहां से लोग अपनी पसंद के कपड़े बिना रोक ले जाएं। जो भी अपने कपड़ों को अब नहीं पहनना चाहते, वे यहां आकर किसी भी आकार के कपड़े दे जाएं।
टैम्पो में भरकर कपड़े ले जाते और बांटते हैं
संजय किराये का टैंपो लेकर दादरी की झुग्गी झोपड़ी और ग्रामीण क्षेत्रों में ईंट-भट्टों, फुटपाथों पर पहुंच जाते हैं। कपड़े मिलने पर इन लोगों की आंखों में खुशी झलक रही थी। वहीं गीता, सुनीता, मुकेश व मोहन ने बताया कि हर वर्ष सर्दी के मौसम वे संजय उनके पास टैंपो में कपड़े लेकर पहुंचते हैं और उनकी मदद करते हैं।