महेंद्रगढ़ के अग्निशमन कार्यालय मे "अग्निशमन सेवा दिवस" मनाया गया
14 अप्रैल 1944 को बॉम्बे डॉकयाडड में बडे पैमाने पर आग और विस्फोट में अपने प्राणों की आहुति देने वाले बहादुर अग्नि सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के लिए 14 अप्रैल को "अग्निशमन सेवा दिवस" के रूप में मनाया जाता है । शहीदों को याद करते हुए एक जागरूकता रैली भी निकाली गयी ।
महेंद्रगढ़ || 14 अप्रैल 1944 को बॉम्बे डॉकयाडड में बडे पैमाने पर आग और विस्फोट में अपने प्राणों की आहुति देने वाले बहादुर अग्नि सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के लिए 14 अप्रैल को "अग्निशमन सेवा दिवस" के रूप में मनाया जाता है । शहीदों को याद करते हुए एक रैली भी निकाली गयी । फायर अधिकारी विकास कुमार ने बताया कि 14 अप्रैल 1944 को बॉम्बे डॉकयाडड में बडे पैमाने पर आग और विस्फोट में अपने प्राणों की आहुति देने वाले उन बहादुर अग्नि सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के लिए इस दिन को "अग्निशमन सेवा दिवस" के रूप में मनाया जाता है। आज से 79 साल पहले (14 अप्रैल 1944) बॉम्बे में एक-एक करके दो भयानक विस्फोट हुए ! जिसने पूरी बॉम्बे को हिला कर रख दिया। बताया जाता है कि 1944 में हुए धमाके इयने जोरदार थे कि मीलों तक धमाके का असर हुआ था। उस दिन फायर बिग्रेड के कर्मचारियों ने दिन दिन की कडी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया था। इसमें फायर कर्मचारी/अधिकारी, सेना के जवान और सिविलियन को मिलाकर लगभग आठ सो लोग शहीद हुए और लगभग चार हजार के आसपास लोग घायल हुए। भारत देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली बॉम्बे का बहुत बुरा हाल था ! दित्तीय विश्वयुद् के कारण 1944 में विवटश कार्गो शिप फो फोर्ट स्टिकइन जहाज जो 24 फरवरी 1944 को ब्रिटेन से चलकर कराची होते हुए 14 अप्रैल 1944 को भारत में बॉम्बे विक्टोरिया डॉक पर पहुचा। इस जहाज में कच्चा तेल, चौदह सो टन विस्फोटक सामग्री, लडाकू विमान, लकडी और सताशी हजार कपास की गट्ठर जो कराची से लादी गई थी। आग लगने के खतरे के बावजूद न ये गट्ठर शिप पर रखे तीन सो टन डायनामाइट के निचले तल पर रखे गए। इस मालवाहक जहाज में सब मिश्रित सामान भरा हुआ था ! जहाज के कप्तान "अलेक्जेंडर जेम्स नाइस्मिथ" ने ये सब लादने से मना कर दिया था। उसने आशंका जताई थी कि जहाज में विस्फोट हो सकता है।
जहाज को डॉक पर लाते समय जहाज पर लाल रंग का झंडा भी नहीं था व डॉक पर आने के 48 घन्टे बाद भी खाली नहीं किया गया। जहाज के कर्मचारियों को कुछ धुआं दिखाई दिया और पता चला की आग लगी हुयी है। उसको भुजाने का प्रयास किया गया। बॉम्बे फायर बिग्रेड से सहायता आयी, चालक दल, डॉक साइड फायर टीमें और दमकल जहाज नौ सो टन से अधिक पानी को पंप करने के बावजूद न तो आग को बुझा पा रहे थे और न ही घने धुएं के कारण स्रोत को खोज पा रहे थे। तब अधिकारियों ने जहाज को पानी में डुबो देने का फैसला लिया लेकिन इसी समय दोपहर के समय एक भयानक विस्फोट हुआ और सब कुछ तहस नहस हो गया। उसके बाद शाम के समय दूसरा विस्फोट हुआ जिससे 50 से 70 किलोमीटर तक सब कुछ हिला कर रख दिया। इसमें फायर के 66 कमचारी, सेना के 15 जवान, नौसेना के सात जवान शहीद हुए और पुलिस व आमजन को मिलाकर कुल लगभग आठ सौ लोगो को अपनी जान से हाथ धोना पडा। उनको श्रद्धांजलि देने के लिए हर वर्ष 14 अप्रैल से 20 अप्रैल तक फायर सप्ताह मनाया जाता है और लोगो को जागरूक किया जाता है।