हरियाणा के मांझी बने बुजुर्ग दंपती, तीन साल में पहाड़ की चोटी पर बना दिए पानी के कुंड
गांव कादमा निवासी जिला पार्षद प्रतिनिधि अशेाक कुमार ने बताया कि युवा क्लब के सदस्यों ने जब बुजुर्ग दंपती को पहाड़ी पर काम करते देखा तो वे भी इसमें सहयोग करने लगे। इन कुंडों में बारिश का पानी इक्ट्ठा हो जाता है, जो आसपास रहने वाले गीदड़, हिरण, गाय, भेड़-बकरी, लोमड़ी, नीलगाय आदि की प्यास बुझा रहा है। भगवान सिंह व उनकी पत्नी सुबह से शाम तक इसी धूणे पर सेवा में लगे रहते हैं। उन्होंने अपनी एक छोटी सी झोपड़ी भी तैयार कर ली है।
चरखी दादरी || मन में कुछ करने का जज्बा हो तो उम्र की बाधा भी आड़े नहीं आती। इस कहावत को चरखी दादरी की एक वयोवृद्ध दंपती ने सच कर दिखाया है। कादमा निवासी 87 वर्षीय भगवान सिंह ने अपनी 82 वर्षीय पत्नी फूला देवी के साथ मिलकर जल संरक्षण का एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। बुजुर्ग दंपती ने यह साबित कर दिया है कि भले ही वे बूढ़े हो गए हैं, लेकिन उनका जोश युवाओं से कम नहीं है। करीब तीन साल की मेहनत के बूते बुजुर्ग दंपती ने गांव की करीब दो हजार मीटर ऊंची पहाड़ी पर तीन पक्के कुंड बनाकर मिशाल पेश की है। ऐसे में यहां लोगों ने बुजुर्ग दंपती को हरियाणा का मांझी नाम दिया है।
चरखी दादरी जिला के अंतिम छोर पर बसे कादमा गांव 200 साल पहले ठाकुर कदम सिंह ने बसाया था। भगवान सिंह और उनकी पत्नी फूला देवी इसी गांव के निवासी हैं और खेती करते हैं। जब बच्चे खेत में काम करने लगे तो भगवान सिंह का ध्यान साहीवाली पहाड़ी की ओर गया। वहां कभी वे अपने पशुओं को चराने के लिए ले जाते थे। वहां घास फूस और चारे की कमी तो नहीं है, लेकिन जीव जंतुओं के लिए पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी। भगवान सिंह के जहन में वहां पानी के कुंड बनाने का ख्याल आया। छह साल पहले भगवान सिंह और फूला देवी को पहाड़ी की चोटी पर कुंड निर्माण का काम शुरू हुआ। तीन कुंड का निर्माण करवाने में करीब तीन साल लग गया। उन्होंने बताया कि सर्दियों में काफी समय तक काम भी बंद रहा और इसके बाद गांव के युवाओं से सहयोग मिलने पर इस कार्य को सिरे चढ़ाया गया। दंपती ने बताया कि कुंड निर्माण के बाद से यहां देखरेख कर रहे हैं। बीमार होने के चलते बेटे व पोते बुजुर्ग महिला के साथ पहाड़ पर बने कमरों व कुंड को संभालते हैं।
बेटा-पोता भी पहाड़ी पर संभालने पहुंचते हैं
बुजुर्ग दंपती द्वारा बनाये कुंड को संभालने के लिए बेटा रघबीर सिंह व पोता रमेश कुमार पहाड़ी पर पहुंचते हैं और देखरेख भी करते हैं। उन्होंने कुंड की जानकारी देते हुए बताया कैसे बुजुर्ग दंपती ने कुंड बनाने में मेहनत की। हालांकि अपने खर्च पर पाइप लाइन से पानी चढ़ाने का प्रयास भी किया लेकिन पाइप काट दी गई। अब यहां रास्ता व िबजली पहुंचाने की अपील है।
पहाड़ी पर कुंड तक रास्ता बनाने का है सपना
बुजुर्ग भगवान सिंह का कहना है कि अपनी पत्नी के साथ तीन साल की मेहनत से साहीवाली पहाड़ी पर भगवान महादेव की प्रतिमा के अलावा तीन पानी के पक्के कुंड बनाए हैं। अब उसका सपना उम्र के आखिरी पड़ाव में पहाड़ की चोटी पर बने कुंडों तक पक्का रास्ता बनाने का है। अगर स्वास्थ्य ने साथ दिया और जल्द ठीक हुआ तो वह अपनी पत्नी के साथ पहाड़ को काटकर रास्ता बनाने का काम करेंगे।