ब्लड कैंसर से पीड़ित 60 वर्षीय मरीज़ को फोर्टिस गुरुग्राम में मिला नया जीवन

“जब मैं फोर्टिस आया था तो मुझ में बहुत कम उम्मीद थी। मुझे हर 20 दिन में ब्लड ट्रांसफ्यूज़न कराना पड़ता था। मेरा परिवार मुझे हर दिन कमज़ोर होते देख रहे थे और मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता था। जब डॉ. भार्गव ने मुझे उम्मीद दी कि बीएमटी के बाद मैं पहले की ही तरह अपना जीवन जी सकूंगा तो मुझे यह चमत्कार लगा। मेरी छोटी बहन के स्टेम सेल मैच हो गए और मेरी ज़िंदगी बच गई। जब मैं आईसीयू में था तो मेरी स्थिति बेहद गंभीर थी और मेरा परिवार आस छोड़ रहा था। फोर्टिस गुरुग्राम में डॉ. राहुल भार्गव की ओर से किया जा रहा सतत उपचार ही था जिसकी वजह से मैं आज सेहतमंद हूं और आसानी से अपनी रोज़ाना के काम कर पा रहा हूं।”

ब्लड कैंसर से पीड़ित 60 वर्षीय मरीज़ को फोर्टिस गुरुग्राम में मिला नया जीवन

रांची, 31 जुलाई, 2019ः फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के डॉक्टरों ने रांची के 60 वर्षीय मरीज़ श्री लाल मणि महतो का सफलतापूर्वक उपचार किया जो क्रॉनिक माएलोमोनोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएमएमएल) से पीड़ित थे जो ब्लड कैंसर का ही एक प्रकार है जिसकी कोई निश्चित दवा उपलब्ध नहीं है। मरीज़ को बुखार, कम हीमोग्लोबिन, वजन कम होने और कम होते प्लेटलेट्स की शिकायत के साथ फोर्टिस गुरुग्राम में लाया गया था। डॉ. राहुल भार्गव, निदेशक, हेमेटोलॉजी एंड बीएमटी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम और उनकी टीम ने मरीज़ का सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया।श्री लाल मणि महतो को अग्रिम स्तर के ब्लड कैंसर की शिकायत के साथ अस्पताल लाया गया था। उन्हें अग्रिम स्तर के कैंसर के लिए कीमोथेरेपी दी गई। श्री महतो का वज़न काफी तेज़ी से कम होने लगा। इस बीमारी के कारण का पता नहीं था, रांची में एक डॉक्टर से सलाह लेने पर पता चला कि उन्हें खून का नुकसान हो रहा था लेकिन उसका कारण पता नहीं चल सका। मरीज़ के खून का स्तर नियंत्रित करने के लिए उन्हें फोलिक एसिड दिया गया लेकिन मरीज़ की स्थिति और खराब होने लगी। जल्द ही हर 20 दिन में उनके ब्लड ट्रांसफ्यूज़न की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई। रांची में कई डॉक्टरों से सलाह लेने के बाद उन्हें ब्लड कैंसर का पता चला। उनकी समस्या का एकमात्र समाधान बोन मैरो ट्रांसप्लांट था। उन्हें डॉ. राहुल भार्गव के पास लाया गया जिन्होंने सफलतापूर्वक सर्जरी की।डॉ. राहुल भार्गव, निदेशक, हेमेटोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम ने कहा, “ब्लड कैंसर का पता चलना मुश्किल है, दूसरी बात यह कि एक बार पता चलने पर भी कोई दवा नहीं है और बीएमटी ही एकमात्र उपाय है। बीएमटी की प्रक्रिया शुरू की गई, आरबीसी, डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेट्स को शरीर से बाहर निकाला गया। मरीज़ नवजात शिशु की तरह हो गया और उनमें संक्रमण का खतरा बढ़ गया। ऐसी स्थिति में मरीज़ को स्थिर करना एक चुनौती है। एक अन्य शरीर से स्टेम सेल को मरीज़ के शरीर में स्थानांतरित किया गया और सफल ट्रांसप्लांट के लिए शरीर का इसे स्वीकार करना ज़रूरी होता है।