देश के लिए 11 गोल्ड, हरियाणा के लिए 17 गोल्ड जीतने वाली खिलाड़ी का मलाल सामने आया...
चरखी दादरी। गांव की मिट्टी में खेलते हुए देश के लिए 11 गोल्ड व हरियाणा के लिए 17 मेडल जीतने वाली भारतीय महिला कबड्डी खिलाड़ी भीम अवार्डी प्रियंका वर्षों से सरकारी नौकरी का इंतजार कर रही है। प्रियंका कहती हैं, देश को सोने का तगमा दिलाने के लिए दिन-रात मेहनत की, विश्व में नाम भी चमकाया। बावजूद इसके सरकार की अनदेखी के कारण सरकारी का सपना पूरा नहीं हुआ।
चरखी दादरी (प्रदीप साहू) || चरखी दादरी के गांव आदमपुर दाढ़ी की कबड्डी खिलाड़ी प्रियंका ने अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में कुछ चीजे शेयर की। जिसमे उन्होंने बताया की जब साल 2012 में कबड्डी वल्र्ड कप हासिल किया, तो लगा कि इनाम के साथ अच्छी नौकरी भी प्राप्त हो जाएगी, किन्तु किसी ने पूछा तक नहीं। फिर साल 2014 एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीता, तो लगा कि शायद अब किस्मत में भी बदलाव हो जाये, क्योंकि केंद्र तथा प्रदेश में सरकार भी परिवर्तित चुकी थी। परन्तु बहुत दु:ख की बात है कि अभी भी स्थिति पूर्व की ही तरह हैं। इंटरनेशनल लेवल पर मैडलों का ढेर लगाने के कई साल बाद भी सम्मानजनक नौकरी का बेसब्री से इंतजार है।
देश की इस स्टार प्लेयर का दर्द उनके शब्दों में भी झलकता है। प्रियंका कहना है कि तकलीफ और दुख होता है कि फस्र्ट श्रेणी की नौकरी तो दूर की बात है, चतुर्थ श्रेणी की नौकरी तक के लिए नहीं पूछा गया। हमेशा केवल आश्वासन प्राप्त हुआ कि अच्छी नौकरी दी जाएगी तथा इसी आश्वासन में छह वर्ष गुजर गए। दूसरे खिलाडिय़ों को जब नौकरी मिली तो उन्हें खुशी हुई। साथ ही उम्मीद जगी कि अब उसे भी नौकरी मिलेगी, किन्तु इंतजार समाप्त नहीं हुआ।
एक फौजी एवं किसान की बेटी प्रियंका ने देश को गौरव के पल कई बार दिए, किन्तु अपने राज्य में सम्मान की नौकरी हासिल करने के लिए आज तक भटक रही है। अभी हाल ही में पंजाब तथा हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश पर कबड्डी खिलाड़ी कविता की हरियाणा स्पोट्र्स डिपार्टमेंट में उप निदेशक के पद नियुक्ति हुई तो सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है। इसी के साथ प्रियंका ने अपना दर्द बयां किया है। प्रियंका के पिता पूर्व फौजी कृष्ण कुमार ने कहा कि बेटी ने देश व प्रदेश का खेलों में नाम चमकाया। सरकार ने बेटी को भीम अवार्ड भी दिया। बावजूद इसके बेटी को सरकारी नौकरी नहीं मिली तो बहुत पीड़ा होती है। अब भी उसे बेटी की सरकारी नौकरी का इंतजार है।