दशहरा उत्सव हनुमान के स्वरूपों की होती है चालीस दिन पूजा और दशहरे के दिन इन स्वरूपों को धारण करने वालो को हनुमान का रूप मानकर अपने घरो में निमन्त्रण देते है लोग . इन स्वरूपों के गदा प्रहार के बाद ही होता है कैथल में रावण दहन

कैथल और पानीपत में ही प्रचलित है इस स्वरूपों का निर्माण पानीपत में होता है जो भी इन स्वरूपों का निर्माण करता है वह खुद भी 40 दिन का व्रत करता है और बड़ी शुद्धता के साथ इनको बनाया जाता है यह स्वरूप ढोल नगाड़ों के साथ नाचते हुए पूरे शहर में घूमते हैं और रावण दहन से पहले अपनी गदा से रावण के शरीर पर प्रहार करते है तब कैथल का रावण दहन होता है.

दशहरा उत्सव हनुमान के स्वरूपों की होती है चालीस दिन पूजा और दशहरे के दिन इन स्वरूपों को धारण करने वालो को हनुमान का रूप मानकर अपने घरो में निमन्त्रण देते है लोग . इन स्वरूपों के गदा प्रहार के बाद ही होता है  कैथल में रावण दहन
: कैथल में कुछ अलग तरह से मनाया जाता है दशहरा उत्सव हनुमान के स्वरूपों की होती है चालीस दिन पूजा और दशहरे के दिन इन स्वरूपों को धारण करने वालो को हनुमान का रूप मानकर अपने घरो में निमन्त्रण देते है लोग . इन स्वरूपों के गदा प्रहार के बाद ही होता है  कैथल में रावण दहन 
दशहरा उत्सव पर कैथल में एक खास तरह की परंपरा मनाई जाती है इस परंपरा के तहत कुछ युवक प्रभु हनुमान का स्वरूप  अपने शीश पर धारण करने के बाद पूरे शहर में घूमते हैं और परंपरा के अनुसार जब तक यह स्वरूप अपनी गदा से रावण के शरीर  पर प्रहार नहीं करते तब तक रावण दहन नहीं होता है यह परंपरा भारत की आजादी के बाद पाकिस्तान में रहने वाले लोगों द्वारा कैथल में आई जो लड़के हनुमान जी का स्वरुप धारण करते हैं वह 40 दिन का व्रत रखते है 
 घर से बाहर रहते हैं और जमीन पर सोते हैं केवल एक समय फल फ्रूट  सेवन करते हैं इस 40 दिन के अब तक के बाद दशहरे के दिन इन सब स्वरूपों को पूजा अर्चना करने के बाद अपने शीश पर धारण किया जाता है इन स्वरूपों लंबाई 3 फुट से लेकर 12 फीट तक होती है काफी मेहनत और तब का काम है यह और लोगों की आस्था है कि इस 40 दिनों के तप  के बाद भगवान हनुमान जी की शक्ति इन स्वरूपों  को में आ जाती है दशहरे के दिन लोग इन स्वरूपों को धारण करने वालो को अपने घर में निमंत्रण देते हैं और मन्नतें मांगते हैं माना जाता है
 कि ऐसा करने से मनोकामनाएं पूरी हो जानकारी के अनुसार पाकिस्तान से आई परंपरा एक परिवार लेकर आया था यह स्वरूप केवल कैथल और पानीपत में ही प्रचलित है इस स्वरूपों  का निर्माण पानीपत में होता है जो भी इन स्वरूपों  का निर्माण करता है वह खुद भी 40 दिन का व्रत करता है और बड़ी शुद्धता के साथ इनको बनाया जाता है यह स्वरूप ढोल नगाड़ों के साथ नाचते हुए पूरे शहर में घूमते हैं और रावण दहन से पहले अपनी गदा  से रावण के शरीर पर प्रहार करते है तब कैथल का रावण दहन होता है.