दीपों के पर्व दीपावली पर बुज़ुर्गों का अनुठा सम्मान............ मित्ताथल गाँव में दीपावली पर हुआ बुज़ुर्गों का सम्मान ..........

निश्चित तौर पर अजमेर की ये पहल ना केवल सरहानिय बल्कि प्रेरणा देने वाली है। हर गांव के हर घर में बुजुर्गों का ऐसा सम्मान होगा तभी आने वाली पीढी को नई सिख मिलेगी और माता-पिता जो अपनी औलाद को शहनसाहों की तरह पालते हैं उन्हे बुढापे में बादशाहों जैसा एहसाल होगा। तभी हर घर में सुख, शांति व संस्कार आएंगें।

दीपों के पर्व दीपावली पर बुज़ुर्गों का अनुठा सम्मान............ मित्ताथल गाँव में दीपावली पर हुआ बुज़ुर्गों का सम्मान ..........

आज पूरे देश में हर कोई अपने-अपने हिसाब से दीपों के पर्व दिपावली को मना रहा है। कोई अपने लिए खरीदारी कर रहा है तो कोई अपने घर को सजाने में जुटा है। पर बात करें  बवानीखेड़ा की तो यहां मित्ताथल गांव में दिपावली को प्रेरणादायि तरीके से मनाया गया है। यहां हर साल की तरह इस साल भी गांव के एक-एक बुजुर्ग को सम्मानित किया है जो हम सब के लिए बङा सबक भी है।  दिपावली का हर कोई बङी बेसबरी से इंतजार करता है। हर कोई दीपों के झिलमिल में कोई लङियों की चकाचौंद में खो जाता है। पर बुहत से लोग ऐसे हैं जो इन खुशियों में शामिल नहीं हो पाते। उनके लिए ये त्यौहार फिका ही रहता है। इसमें सबसे ज्यादा हमारे बुजुर्ग होते हैं। पर मित्ताथल गांव निवासी अजमेर ने दीपों के पर्व दिपावली को प्रेरणादायी तरीके से मनाने के लिए नई पहल शुरु की हुई है। अजमेर हर साल अपने गांव के हर बुजुर्ग को सम्मानित करते हैं। फिर वो बुजुर्ग चाहे सूबे के किसे कौने में क्यों ना हो। सबको एक साथ इक्कठा कर सम्मानित करते हैं। अजमेर का कहना है कि जिस घर या गांव में बुजुर्गों का सम्मान नहीं होगा वहां ना संस्कार होंगें ना ही तर्की व शांति होगी। वहीं गांव के अन्य लोग भी अजमेर की इस पहल की सरहाना कर रहे हैं।  अपने आप दीपों के पर्व पर सम्मान पाने वाले बुजुर्ग भी बेहत खुश हैं। गुरुग्राम से अपने पैत्रिक गांव सम्मानित होने पहुंचे एक बुजुर्ग ने बताया कि सम्मानित होना अपने आप में गर्व की बात है। ऐसे कार्यक्रमों में अन्य साथियों से भी इस बहाने मुलाकात हो जाती है जिनसे साल में और किसी दिन मुलाकात नहीं हो पाती। इन्होने कहा कि ऐसा सम्मान हर बुजुर्ग को मिले तो एक अच्छे व सभ्य समाज का निर्माण होगा।  निश्चित तौर पर अजमेर की ये पहल ना केवल सरहानिय बल्कि प्रेरणा देने वाली है। हर गांव के हर घर में बुजुर्गों का ऐसा सम्मान होगा तभी आने वाली पीढी को नई सिख मिलेगी और माता-पिता जो अपनी औलाद को शहनसाहों की तरह पालते हैं उन्हे बुढापे में बादशाहों जैसा एहसाल होगा। तभी हर घर में सुख, शांति व संस्कार आएंगें।