राजनीति के एक अरुण का अस्त, सियासत-ए-अरुण जेटली का सफरनामा...

अरुण जेटली, भारतीय सियासत का वो क्षत्रिय योद्धा जिसने विपक्ष के हर वार को सीने पे लिया और अपने पार्टी अपने राजनैतिक कुल को आंच तक नहीं आने दी । अरुण जेटली का दिवंगत होना देश कि राजनीति को जितना आघात करता हैं उससे कहीं ज्यादा पीड़ा अगर किसी को देता हैं तो उस इंसान का नाम हैं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी । शायद यही वजह है कि उनके मृत्यु के बाद नरेंद्र मोदी अपने ट्वीट में इसे व्यक्तिगत क्षति कहते हुए भावुक होते हैं ।

राजनीति  के एक अरुण का अस्त, सियासत-ए-अरुण जेटली का सफरनामा...
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अरुण जेटली के सफर को बचपन के गलियारों से शुरू करते हैं। उनका बचपन शुरू होता हैं पुंजाब के गलियों से... । भारत का पंजाब नहीं, बल्कि पाकिस्तान के लाहौर के पास वाला पंजाब । 28 दिसम्बर 1952 को अपने दादा के चार वकील बेटों में से एक महाराज किशन सिंह जेटली और माता रत्न प्रभा जेटली के कोख से जन्म होता हैं अरुण जेटली का । और यहीं से उनके खून में वकालत की नीव पड़ती हैं । आजादी के बाद बँटवारे ने कई बस्तियाँ जलाये हैं । उसी आग में जेटली का परिवार भी झुलसता है और रेफ़्यूजी होकर लाहौर से दिल्ली विस्थापित हो जाता हैं ।

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दिल्ली आने के बाद अपने बेहतर जीवन के लिए संघर्ष शुरू होता हैं और जेटली उस दौर में जी तोड़ मेहनत करते हुए सेंट जेवीयर्स से बारहवीं और श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से स्नातक करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से ही LLB करते हैं । छात्र जीवन में ही वो ABVP के सक्रिय सदस्य और दमदार छात्र नेता के तौर पर उभरते हैं और सियासत की क्यारियों में अपने पहचान का बीज बो देते हैं । इंदिरा गांधी के समय ईमेर्जेंसी में बड़े ही फिल्मी अंदाज में गिरफ्तारी देकर वो युवा आंदोलन का मुखड़ चेहरा बन जाते हैं ।

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इसी दौरान उनकी मुलाक़ात होती हैं गुजरात के नरेंद्र मोदी से । जाने माने पत्रकार रजत शर्मा से भी उनकी मित्रता उसी कॉलेज के दिनों से हैं । कहा जाता हैं कि नरेंद्र मोदी से दोस्ती इतनी गहरी थी कि जेटली के राज्यसभा का रास्ता भी गुजरात से होकर गुजरा । नरेंद्र मोदी की जमीन से सियासत और पत्रकारों की साथ गांठ से मीडिया को मैनेज करते हुए जेटली सफलताओ की सीढ़ियाँ चढ़ते चले गए ।

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मुकाम मिला , सफलतायें मिली, कुछ हार भी मिले लेकिन सियासी कद के आगे बहुत छोटे रह गए । मोदी सरकार जब पूर्ण बहुमत से सरकार में आई तो दोस्ती ने अपना रंग दिखाया सबसे ताकतवर रक्षा विभाग और वित्त मंत्रालय का पदभार अरुण जेटली को सौंपा गया।

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मोदी सरकार 2 के कार्यकाल शुरू होने के दौरान उनकी सेहत ने साथ छोडना शुरू कर दिया । इसकी ज़िम्मेदारी लेते हुए अरुण जेटली ने प्रधान मंत्री को लिखे अपने पत्र में ये अनुशंसा की कि आराम देते हुए किसी भी पदभार से मुक्त रखा जाये । आखिर कार एक लंबे सफर का अंत हुआ...और राजनीति के इतिहास में वकालत की जमीन से भाजपाई सारथी बना हुआ ये सितारा 23 अगस्त को हमेशा के लिए दुनिया की आँखों से ओझल हो गया ।