दीवाली के बाद पटाखों से दिल्ली एनसीआर सहित यमुनानगर जिले की हवा भी ज़हरीली हो चुकी है।वायु प्रदूषण इतना है कि यहाँ सांस लेना भी मुश्किल  

त्योहार भी आते हैं एग्रीकल्चर बर्निंग भी होती है किसान जब फसल को निकालते हैं सफाई करते हैं जब पंखे चलाते हैं उससे भी जो हवा है दूषित होती है ।कई सारी चीजें इकट्ठी होकर इस तरीके का वातावरण बन जाता है। सबको मिलकर इसमें आगे आना चाहिए और सहयोग करना चाहिए ताकि हर स्तर पर इस प्रदूषण को रोकने का प्रयास किया जा सके।

दीवाली के बाद पटाखों से दिल्ली एनसीआर सहित यमुनानगर जिले की हवा भी ज़हरीली हो चुकी है।वायु प्रदूषण इतना है कि यहाँ सांस लेना भी मुश्किल  

भारत की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर बेहद ख़राब बना हुआ है।दिवाली के दौरान हुई आतिशबाज़ी ने इस प्रदूषण को और भी ज़्यादा बढ़ा दिया है।शुक्रवार को हवा की गुणवत्ता नापने का सूचकांक 300 के पार पहुँच गया जिसे 50 से ज़्यादा नहीं होना चाहिए।प्रदूषण की इस स्थिति को लेकर पहले भी चिंता ज़ाहिर की गई थी।पिछले साल की तरह इस साल भी भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री में कमी लाने की कोशिश की, लेकिन कोर्ट के आदेश का असर कम ही दिखा।क्यों हर बार दीवाली के बाद सांस लेना भी हो जाता है मुश्किल इस दीवाली के बाद हवा में कितना ज़हर घुला है इस बारे में जब हरियाणा प्रदूषण विभाग के अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने बताया की इस बार पटाखे जलने की वजह से हमारी जो एयर क्वालिटी इंडेक्स है वह 300 से ऊपर चला गया है जो कि बहुत ही पुअर  कंडीशन होती है । कम हुआ है जागरूकता है बच्चे ने भी पटाखे कम चलाये  फिर भी पटाखे चले है जिससे सल्फर मेटल जो कि पटाखों में होते हैं इनकी वजह से धुआ वातावरण में आता है और पटाखे काफी जलते हैं इसकी वजह से हवा दूषित होजाती है जब धुंआ और ज़हरीली गैसेस मिक्स होती है जिसकी वजह से नीचे लोगों को सांस की प्रॉब्लम होती है दमा की समस्या आती है ।लोगों को मास्क डालना पड़ता है। वही इसका असर कितने दिनों तक रहता है इस पर अधिकारी ने कहा कि हवा की डायरेक्शन में पर यह निर्भर करता है कि हवा किस तरफ की है हवा चलेगी तो एयर पार्टिकल वह हवा की वजह से हवा ठीक हो जाए या फिर बारिश हो जाए तो हवा चलने की वजह से उसका इफेक्ट पड़ता है। उन्होंने कहा कि यह वातावरण के अंदर इन दिनों के अंदर अक्सर बन जाते हैं क्योंकि त्यौहार भी सभी होते हैं अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक हम अपनी तरफ से यह है की प्रदूषण और न बड़े बेस लेवल पर हम अपनी एक्टिविटी करते हैं। डायरेक्शन देते हैं एम सी  वगैरह को की कूड़ा ना जलाया जाए कहीं पराली ना जले उनके चालान किए जाएं ।बाकी ट्रैफिक चालान होते है प्रदूषण को लेकर जिसने उनसे पोलूशन फैलता है अगर विकल्प सही होंगे तो वह धुआं नहीं फेंकेंगे।अगर समय पर उनकी जांच हो सर्विस हो।15 अक्टूबर से ऐसा मौसम बन जाता है और लगभग दिसंबर तक रहता है, त्योहार भी आते हैं एग्रीकल्चर बर्निंग भी होती है किसान जब फसल को निकालते हैं सफाई करते हैं जब पंखे चलाते हैं उससे भी जो हवा है दूषित होती है ।कई सारी चीजें इकट्ठी होकर इस तरीके का वातावरण बन जाता है। सबको मिलकर इसमें आगे आना चाहिए और सहयोग करना चाहिए ताकि हर स्तर पर इस प्रदूषण को रोकने का प्रयास किया जा सके।