बीजेपी के वरिष्ठ नेता रामेश्वर चौहान की राम मंदिर निर्माण को लेकर तपस्या हुई सफल...

राम मंदिर का सपना अब साकार होने जा रहा है।इस सपने को साकार करने में जहां लाखो लोगो ने अपना बलिदान दिया।तो कुछ चेहरे ऐसे भी है जिन्होंने उस समय के कई आंदोलनों में भाग लिया और सँघर्ष किया और आज उसका ये सँघर्ष पूरे राष्ट्र को सफल होता दिखाई दिया।ऐसी ही एक शख्सियत यमुनानगर के जगाधरी में रहने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेता रामेश्वर चौहान उन्होंने अपने कई साथियों के साथ राम मंदिर के लिए हुए 5 आंदोलनों में भाग लिया।जहाँ कल जब पूरा देश टीवी पर राम लला की जन्मभूमि पर हो रहे पूजन हो देख उत्सुक हो रहा था तो उसी वक्त बीजेपी नेता राम मंदिर के लिए किए सँघर्ष की यादों में घर मे बैठे उस वक्त की तस्वीरे देख भावुक हो रहे थे।इन पुरानी तस्वीरों में बीजेपी के दिग्गज नेताओं से लेकर आज वर्तमान में हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी थे।

बीजेपी के वरिष्ठ नेता रामेश्वर चौहान की राम मंदिर निर्माण को लेकर तपस्या हुई सफल...

यमुनानगर (सुमित ओबेरॉय) || वरिष्ठ भाजपा नेता व हरकोफेड के पूर्व चेयरमैन रामेश्वर चौहान ने  बताया कि वर्ष 1989 में वह 70 लोगों के साथ अयोध्या गए थे। 1990 में वहां अयोध्या में शीला पूजन था। इसके लिए जिला में 40 दिन कार्यक्रम चला था।  उन्होंने बताया कि उस वक्त देश में विरोध का माहौल था। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह सीएम थे। उन्होंने धमकी दी थी कि जो भी अयोध्या में आएगा उसका गाेलियों से स्वागत किया जाएगा। लेकिन जगाधरी के कार सेवक पीछे हटने को तैयार नहीं थे। अंबाला स्टेशन से ट्रेन में सवार होकर अयोध्या के लिए रवाना हुए।रामेश्वर चौहान ने बताया कि ट्रेन जब उत्तर प्रदेश पहुंची तो पुलिस ने कार सेवकों से पूछताछ की। कइयों ने जोश में श्रीराम के जयकारे लगा दिए, जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। परंतु गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने खुद को व्यापारी बताया था। अपने साथ लेकर गए अार्डर बुक पुलिस को दिखाई। उन्होंने पुलिस को बताया था वे व्यापारी हैं और आर्डर लेने लखनऊ जा रहे हैं। तब जाकर पुलिस ने उन्हें छोड़ा था। गोंडा स्टेशन पहुंचने से पहले ट्रेन जब धीमी हुई तो सभी कार सेवक नीचे कूद गए।

सँघर्ष के उन दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया कि वे जिस गांव से गुजरते थे वहां के 12-13 साल के बच्चों को ये देखने के लिए भेजते थे कि आगे पुलिस तो नहीं खड़ी। तब ज्यादातर समय उन्हें गुड़ व चने खाकर जिंदा रहना पड़ा। सरयू नदी का पुल आधा पार करते ही पुलिस ने उन्हें रोक दिया। पुलिस ने गोली भी चलाई। जिससे बचने लिए कई लोगों ने नदी में छलांग लगा दी थी। तब गोली के छर्रों से उनकी पैंट में भी छेद हो गए थे। चौहान व लक्ष्य बिंद्र ने बताया कि 1992 में भी 800 लोगों का जत्था अयोध्या गया था। उनके ग्रुप में 48 लोग थे। छह दिसंबर को कार सेवा होनी थी परंतु वे आठ दिन पहले ही वहां पहुंच गए थे। तब उन्होंने ढांचे को ढहा दिया था। गुंबद के अचानक गिरने से जगाधरी के गोमती मोहल्ला के विपिन कुमार की टांग में फ्रेक्चर हो गया। अयोध्या के अस्पताल ले गए। पकड़े जाने के डर से वहां से स्ट्रेचर पर उन्हें लेटाकर अस्पताल से फरार हो गए। ट्रेन में स्ट्रेचर पर ही जगाधरी लाया गया।

रामेश्वर चौहान ने बताया कि ऐसा उन दिनों को याद कर जब कोई पुराना साथी मिलता है तो हम रोमांचित हो जाते है उस पल को याद करके जब हम सबसे पहले आंदोलन में गए श्मशान घाट में रात का समय था सुबह जब उठे तो देखा कि जिस जमीन पर हम सोए हुए थे वहाँ मुर्दों की हड्डियां पड़ी थी।कारसेवकों का भी बहुत बड़ा योगदान है ।इस तरह के बहुत से ऐसे किस्से है।लेकिन जो सपना साकार हुआ उसका सदियों से इंतज़ार था।आज सगठनों के पाश जितनी शक्ति है उस वक्त इतनी नही थी। लाखो कुर्बानियों और लम्बे सँघर्ष के बाद ये दिन आया।कल से ही देख रहा हूं हर जगह खुशी की लहर है हर चोंक चौराहे पर लोग खुशियां मना रहे है ।